Saturday, 9 August 2014

नेह की डोर !!

                                     

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

1
नेह की डोर
बाँधी है मन पर
भैया तुम्हारे ।

2
तेज रवि सा 
उन्नत भाल सजे
कीर्ति रश्मियाँ ।
3
दूँ शुभेच्छाएँ
फलित कामनाएँ
सब हो जाएँ ।
4
कुल दीपक
करना उजियार
यही उद्गार ।
5
राखियाँ बनें
रक्षा कवच शुभ
विपत हरें ।
6
राखियाँ सजें
कलाई पे तुम्हारी
सुधियाँ मेरी ।
7
राखी पे दूर
एक मोती पिरोया
आँसू भिगोया ।
8
राखी हैं प्यार
राखियाँ हैं शपथ
रखना लाज ।
9
रेशम स्पर्श
मंत्र अभिसिंचित
पुष्प वज्र सा।

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(चित्र गूगल से साभार )