डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
झूले,गीत ,बहार सब ,आम,नीम की छाँव |
हमसे सपनों में मिला ,वो पहले का गाँव ||१
सूरज की पहली किरन ,पनघट उठता बोल |
छेड़ें बतियाँ रात की , सखियाँ करें किलोल ||२
गगरी कंगन से कहे ,अपने मन की बात |
रीती ही रस के बिना ,बीत न जाए रात ||३
अमराई बौरा गई , बहकी बहे बयार |
सरसों फूली सी फिरे ,ज्यों नखरीली नार ||४
कच्ची माटी ,लीपना ,तुलसी वन्दनवार |
सौंधी-सौंधी गंध से ,महक उठे घर-द्वार ||५
बेला भई विदाई की ,घर-घर हुआ उदास |
बिटिया पी के घर चली ,मन में लिए उजास ||६
सोहर बन्ने गूँजते ,आल्हा ,होली गीत |
बजे चंग मस्ती भरे ,कण-कण में संगीत ||७
संध्या दीप जला गई ,नभ भी हुआ विभोर |
उमग चली गौ वत्सला ,अपने घर की ओर ||८
बहकी-बहकी सी पवन ,महकी-महकी रात |
नैनन-नैन निहारते ,तनिक हुई ना बात ||९
नींद खुली ,अँखियाँ हुईं ,रोने को मजबूर |
लेकर थैली ,लाठियाँ ,गाँव नशे में चूर ||१०
जात-धर्म के नाम पर ,बिखरा सकल समाज |
एक खेत की मेंड़ पर , चलें गोलियां आज ||११
कैसे मैं धीरज धरूँ ,दिखे न कोई रीत |
कैसे पाऊँगी वही ,सावन ,फागुन , गीत ||१२
दिए दिलासा दे रहे ,रख मन में विश्वास |
हला! न हिम्मत हारिए ,जलें भोर की आस ||१३
तम की कारा से निकल ,किरण बनेगी धूप |
महकेगी पुष्पित धरा ,दमकेगा फिर रूप ||१४
चित्र गूगल से साभार