डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
पुरवा में पन्ने उड़े , पलटी याद किताब
।
कितना मन महका गया , सूखा एक गुलाब
।। ..
दर्द,महफिलें याद कीं , खुशियों के अरमान ।
मुट्ठी भर औकात है , पर कितना सामान ।।
3
सहने को सह जाएँगे , पत्थर बार हज़ार
।
4
माथे का चन्दन हुई , उसके पग की धूल ।
मनुज मनुजता हित बढ़ा , केवल निज सुख भूल ।।
बीती बातें भूल कर , चलो मिला लें हाथ ।
जीवन भर क्या कीजिए ,नफ़रत लेकर साथ ।।
रिश्ते कल पूछा किए ,हमसे एक सवाल ।
खुद ही सोचो बैठ कर , क्यों है ऐसा हाल ।।
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(चित्र गूगल से साभार )