डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
बरस बीतते एक दिवस तो
मेरी सुध आई
मन हिन्दी मुस्काई ।
गिट-पिट बोलें घर बाहर सब
नाती और पोते
नन्ही स्वीटी रटती टेबल
खाते और सोते
खूब पार्टी घर में अम्मा
बैठी सकुचाई
मन हिन्दी मुस्काई !
ओढ़े बैठे अहंकार की
गर्द भरी चादर
मान करें मदिरा का छोड़ी
सुधामयी गागर
पॉप,रैप के संग डोलती
बेबस कविताई
मन हिन्दी मुस्काई !
अपनों में अपनापन लगता
झूठा- सा सपना
कहाँ छोड़ आए हो बोलो
स्वाभिमान अपना
गौरव गाथा दीन-हीन की
जग ने कब गाई
मन हिन्दी मुस्काई !
~~~~****~~~~
(चित्र गूगल से साभार )