जन्मा मुझे ,मैं जो भी हूँ उसने ही बनाया 
खाना, लिखना , बोलना उसने ही सिखाया 
सही गलत की उसने ही पहचान बताई
चलना है मुझे जिसपे सही पथ भी दिखाया ।।1
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मुस्कुराके लाड़ से दुलारती भी है 
बालों को बड़े प्यार से संवारती भी है 
दो पल उदास वो मुझे रहने नहीं देती 
करती हूँ गल्तियां तभी फटकारती भी है।।2
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छाए निराशा उसने गले से लगा लिया 
आँचल में अपने प्यार से कितने छुपा लिया 
अपने लिए किसी से कुछ भी मांगती न थी 
बच्चों के लिए घर को ही सिर पर उठा लिया ।।3
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अपनी चाहतों को जिया ही नहीं कभी 
पीड़ा का अपनी ज़िक्र किया ही नहीं कभी 
हौंसलों को मेरे उसने पंख दे दिए 
सपनों पे अपने ध्यान दिया ही नहीं कभी ।।4
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सबके मनों को जानती है मन की नेक है
सब मोतियों को जोड़ता धागा वो एक है 
भेद सबके मौन में रखती लपेटकर 
तब ही तो सबके मन की मधुरतम सी टेक है।।5
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साए में जिसके प्यारी धूप प्यारी शाम है 
जो सबके लिए सारे सुखों का ही धाम है 
पुकारते हैं मुश्किलों में बस सदा ही 'माँ' !
आता है याद जो वो तुम्हारा ही नाम है ।।6
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
