Friday, 21 December 2012

क्षणिकाएँ...

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 

मुस्कान 

धूप 
आशाओं की 
जगमगा कर खिली 
जब वो आकर मिली |

पीर 

अनकही 
कह गई 
जब दिल से उठी 
आँख से बह गई |

दीप 

जीवन में तृष्णा 
हाँ ,तृष्णा पलेगी 
स्नेह ही न दोगे
तब दीप बाती
कैसे जलेगी ?


1 comment:

  1. पीर

    अनकही
    कह गई
    जब दिल से उठी
    आँख से बह गई |

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