Saturday, 29 December 2012

दामिनी तुम्हारे लिए !!


जो दिल ने कहा ........
विनम्र श्रद्धांजलि सहित !

दुखद है .....
जीवन की एक फ़रियाद गई
वो लेकर कैसी याद गई ...हम शर्मिन्दा हैं दामिनी !
दिवंगत आत्मा को शान्ति मिले ,
समस्त हिन्दुस्तान परिवार इस दुःख को सहन करने की सामर्थ्य पाए और हर दिल में उसकी यादों की शमा जलती रहे ...ऐसी प्रार्थनाओं के साथ 
ज्योत्स्ना शर्मा 29-12-12
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बहुत ही कठिन है वो यादें भुलाना ,
हो दर्द दिल में मगर मुस्कुराना |
नहीं तेरा मेरा,ये आधे जहाँ का ,
कहा दर्द डूबी कलम ने फ़साना|
भर जायेंगें सब जख्म धीरे धीरे ,
निशाँ देखकर होगा मुश्किल भुलाना |
दिए हसरतों के ,ये तूफ़ान फिर भी ,
बुझा न सके ,चाहे कितना बुझाना |
मिलें मुश्किलें ,तार तेरा जिगर हो ,
मगर फ़र्ज़ से पग न पीछे हटाना ||
ज्योत्स्ना शर्मा 28-12-12
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पोर पोर पीड़ा बसी ,अभी रहे जो मौन |

दुष्ट दुशासन को भला ,दंड दिलाये कौन ?????
अर्ज़ है ये कोई फरमान नहीं है ...संवाद हीनता समस्या का समाधान नहीं है |

.....ज्योत्स्ना शर्मा 24-12-12

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घोर घटाएँ हों भले ,दमक दामिनी आज ,

बनो उजाले की किरण ,जागे सकल समाज |

जागे सकल समाज , भरोसा देना होगा ,

तेरी ,हमें हिसाब , 'आह' का लेना होगा |

दोहरायें न और , निर्दयी व्यथा कथाएं ,

दमक दामिनी आज , भले घनघोर घटाएँ ||
.....
दामिनी के साहस ,संकल्पशक्ति और जिजीविषा को ह्रदय से नमन ...ढेरों दुआओं के साथ ज्योत्स्ना शर्मा 23-12-12

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हमारी ,समाज की 
पीड़ा की कोई सीमा न थी 
एक दुखद ,कड़वा सत्य 
अनावृत था ...और ...
'तमाशबीनों' के पास 
चादर न थी ......
.इतने निर्मम
 कैसे हो गए हम ???
.............ज्योत्स्ना ............
२१-१२-१२ .

सुना था .....
सितारों से आगे भी उसका जहाँ है ,........
वही आज क्यूँ दर्द की इन्तेहाँ है |

वो कल भी'खबर'थी,वो अब भी 'खबर' है ;
संवेदना...सो गई अब ... किधर हैं ......

और ये भी ..

"सम्पूर्ण सुरक्षा "
वादा है हमारा |
नहीं टलेगा
किसी बहाने से |
बस ज़रा हमें
फुरसत तो मिले
'हुड़दंग' मचाने से ..!!!

पूरी आशा के साथ 
...ज्योत्स्ना शर्मा   
१९-१२-१२ 

Friday, 21 December 2012

क्षणिकाएँ...

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा 

मुस्कान 

धूप 
आशाओं की 
जगमगा कर खिली 
जब वो आकर मिली |

पीर 

अनकही 
कह गई 
जब दिल से उठी 
आँख से बह गई |

दीप 

जीवन में तृष्णा 
हाँ ,तृष्णा पलेगी 
स्नेह ही न दोगे
तब दीप बाती
कैसे जलेगी ?


Wednesday, 7 November 2012

मेरी रचनाएँ

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तमसो मा ज्योतिर्गमय

'यादें'  मासिक नवम्बर-2012 में प्रकाशित आलेख

Saturday, 20 October 2012

बड़ी उदासी थी कल मन में......


डॉज्योत्स्ना शर्मा
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।

रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया

बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।


दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया

बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
 

राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया

बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
-0-

Thursday, 11 October 2012

फूलों से सीखा .....




     डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
काँटो में बिंधना , भले चोट खाना , 
फूलों से सीखा- सदा मुस्कुराना
सपने सजाना है और कर्म करना ;
नियति के हाथों ,उन्हें सच बनाना ।।



Tuesday, 2 October 2012

5-कहे चंद्रिका /नई कोपलें


1-कहे चंद्रिका -डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

कहे चंद्रिका
चन्द्र ,सुनो हो तुम
साथ तुम्हारे
किन सोचों में गुम
पद्मिनी कहाँ
प्रियतम के पास
सुनो चंद्रिका
मेरा मन उदास
सुख क्षणिक
ये हो गया विश्वास
मानो चंद्रिका
यूँ हो गई उदास


कहे गीतिका
भाव ,सुनो हो तुम
साथ तुम्हारे
किन सोचों में गुम
विकल से भाव ने
मचल कहा
होकर नयनों से
सजल कहा
पग पग सजनी
छल का वास
सुनो तो कहूँ
मेरा मन उदास
भाव की कही
हृदय को छू गई
और गीतिका
यूँ उदास हो गई

कहे वर्तिका
दीप, सुनो हो तुम
साथ तुम्हारे
किन सोचों में गुम
मंदिरों में भी
नहीं प्रभु की आस
सुनो वर्तिका
मेरा मन उदास
सहज स्नेह
कर गया प्रवास
दीप- वर्तिका
यूँ हो गई उदास


प्राची की ओर
दीपित प्रभा उठी
आस- किरन 
बस मुस्कुरा उठी
समय- चक्र
चले ,यही संदेश
तम में रहे
प्रकाश का प्रवेश
गिनो तो पल
लो ,वसन्त भी आया 
मुदित मन
पतझर ने गाया
प्रमुदित- सा
चन्द्र गुनगुनाया
दीप मगन
रही संग वर्तिका
भाव रसिक
है प्रफुल्ल गीतिका
उदासी गई
तो उल्लास हो गया
उजियार- सा
हर मन के आज
आसपास हो गया ।
-0-
2- नई कोपलें
ज़रा तो देखो
नई कोपलें छिपीं
इसी शाख पे
धीमे से खिड़की से
जैसे हमको
देख रही हैं प्यारी
घबराए से
देखे भाव हमारे
ये करती हैं
हाँ ,क्या खूब इशारे
मानव मन
है कैसा भरमाया
नियति को भी
ये समझ न पाया 
लिया ,छोड़ न पाया ।.
-0-




4-सपने होम हुए


माहिया
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
कल बात कहाँ छोडी़
सच तक जाती थी
वो राह कहाँ मोडी़ ।
2
नस नस में घोटाला
तन उनका उजला
पर मन कितना काला ।
3
कैसे हालात हुए
अब विख्यात यहाँ
श्री मन 'कुख्यात' हुए ।
4
कट जा तम-कारा
खोलो वातायन
मन में हो उजियारा ।
5
दो औ' दो पाँच नहीं
कहना है कह दे
अब सच को आँच नहीं ।
6
वो पल कब आएँगें
मुदित मना पंछी
जब फिर से गाएँगें
7
हम ऐसे मोम हुए
कल चौराहे पर
कुछ सपने होम हुए ।
-0-

3-मन से छुआ


डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
अकेली चली
हवा मन उदास
कितनी दुखी हुई
साथी जो बने
चन्दन औ' सुमन
सुगंध सखी हुई ।
2
मन से छुआ
अहसास से जाना
यूँ मैंने पहचाना
मिलोगे कभी
इसी आस जीकर
मुझको मिट जाना ।
3
बूँद बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया ।
4
जीवन-रथ
विश्वास प्यार संग
चलते दो पहिये
समय -पथ
है सुगम ,दुखों की
बात ही क्या कहि
-0-