Wednesday, 30 December 2020

149- नए साल में !


                          वीर भरें हुंकार हमारे , नए साल में ,
                         डर कर भागें वैरी सारे , नए साल में !

                         असत सत्य के आगे हारे , नए साल में ,
                         चहुँ दिशि फैले हों उजियारे ,नए साल में !

                         मिट जाएँ जग के अँधियारे ,नए साल में ,
                         चमकें आशाओं के तारे , नए साल में !

                        यथासमय बरसें घन कारे ,नए साल में ,
                        महकें घर, वन, उपवन सारे ,नए साल में !

                       भरें खेत, खलिहान हमारे , नए साल में ,
                       भूख किसी को कहीं न मारे ,नए साल में !

                       शिक्षा-दीप जलें हर द्वारे , नए साल में ,
                       मिले न कोई हाथ पसारे , नए साल में !
   
                       सजें नयन में सपने प्यारे ,नए साल में ,
                       पूरे हों सारे के सारे , नए साल में !

                       छोड़-छाड़कर नखरे सारे, नए साल में ,
                       प्यार , प्यार से रोज़ पुकारे , नए साल में !

                       चख लें सुख के शक्करपारे , नए साल में ,
                       मधुरिम हों उद्गार हमारे , नए साल में !
 
                        मात शारदा खूब दुलारे , नए साल में ,
                        हों कवियों के वारे-न्यारे , नए साल में !

                     नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ                                                          डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा

Saturday, 24 October 2020

148-शुभ दशहरा




मन-मन्दिर ,माँ चंडिके ! सदा विराजो आप 

हे महिषासुर मर्दिनी ! मिटें सकल सन्ताप ......

जिनकी है लीला अजब , महिमा अपरम्पार 

मन में उजियारा करें, करते भव से पार .......

ज्योत्स्ना शर्मा 

Saturday, 3 October 2020

147- सजा अल्पना

 


बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !

रीति कौन बताए मुझको,
संध्या गीत सुनाए मुझको
कौन पर्व है कौन तिथि पर
इतना याद दिलाए मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाईवे से जोड़ दिया .......

दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली थी कुछ बेरंगी सी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया ......

राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन, राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
अंतर्जाल ने तोड़ दिया.........

बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !

Jyotsna Sharma 


Saturday, 12 September 2020

146-बारिशें

 


बेदर्द , बेमुरव्वत होती हैं बारिशें
डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें

तरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
कैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें

दिन भर तपी हैं, धूप में जलती रही हैं जो
उन हसरतों का बोझ भी ढोती हैं बारिशें

रोते हुओं को खूब रुलाने के वास्ते
ये नासमझ सी और क्यों रोती हैं बारिशें

आने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
आँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें

आवाज़ वक्त की सुनी और साथ चल पड़े
झोकों को उन्हीं साथ संजोती हैं बारिशें

नन्ही सी छतरियों के साथ खेल-खेलकर
फिर खूब मस्तियों में भी खोती हैं बारिशें


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

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Friday, 14 August 2020

145-जय हिंद

जिसके ऐसे बलिदानी सुत , उसकी मात नहीं होगी
बिखरीं यश की अमर रश्मियाँ, तय है रात नहीं होगी 
धरती से अम्बर तक गूँजें ...... गाथाएँ बलिदानों की 
बात तुम्हारी ही होगी ....बस तुमसे बात नहीं होगी ....
माँ भारती के अमर सपूतों को नमन के साथ आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ 💐🙏💐


Jyotsna Sharma

Friday, 15 May 2020

144- भावों की धारा !



भावों की धारा है – तुमसे उजियारा है

डॉ ज्योत्स्ना शर्मा जी की साहित्यिकी माला में "तुमसे उजियारा है" माहिया छन्द-संग्रह रूपी तीसरा मोती सजने से उसकी चमक और बढ़ गई है एकल  हाइकु-संग्रह और एकल दोहा-संग्रह के बाद, उनका माहिया छन्द-संग्रह प्रकाशन में आया है । यह संग्रह इसलिए भी बहुत खास है क्योंकि यह किसी महिला रचनाकार का ‘प्रथम माहिया  छन्द संग्रह’ है ।जिस प्रकार की भावनात्मक खन उनके बालगीतों, छंदों,गीत, ग़ज़लों में  सुनाई देती है ,वैसी ही संवेदनाओं का स्पर्श मैंने इस माहिया-संग्रह को पढ़कर महसूस किया है ।  डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा जी का गद्य जितना प्रभावशाली है उनकी पद्य रचनाएँ भी उतनी ही आकर्षक और परिपक्व हैं डॉ. ज्योत्स्ना जी की पुस्तक में संकलित माहिया इंद्रधनुषी रंगों की तरह अपनी ओर आकर्षित करते हैंउनके काव्य में जीवन-दर्शन, प्रकृति-प्रेम, मरती संवेदनाओं का दर्द आदि भाव के दर्शन होते हैं । माहिया में कभी जीवन की गहन अनुभूतियों की झलक मिलती है तो कभी हास्य, प्रेम के रंग की रंगोली तो  कभी विरह की व्यंजना है देशप्रेम से परिपूर्ण माहिया पढ़कर मन द्रवीभूत हो जाता हैं भाव और शिल्प दोनों ही दृष्टिकोण से यह माहिया छंद-संग्रह एक अनुपमकृति हैमाँ वीणा वाली, नायक, कान्हा जी, की वन्दना कवयित्री ने बहुत भाव से की हैनके भक्ति भाव का परिचय निम्न माहिया पढ़कर महसूस किया जा सकता है -

भक्तों को मान दिया/ मोह पड़े अर्जुन/ गीता का ज्ञान दिया
मन उजला तन काला/ मोह गया मोहन/ मन, बाँसुरिया वाला
दिल खूब चुराता है/ लाल यशोदा का / फिर भी क्यों भाता है
जादूगर कैसे हो/ जो जिस भाव भजे / उसको तुम वैसे हो

उक्त माहिया छंदों में कवयित्री की, कान्हा जी के प्रति अटूट आस्था का परिचय मिलता है कवयित्री ने अपने  इष्ट की आराधना शब्दों के पुष्पों से  की है यह माहिया छन्द पढ़कर आँखों के आगे कान्हा जी की लीलाएँ नृत्य करने लगती हैं कभी चंचल रसिया कान्हा जी के दर्शन होते हैं तो कभी धीर-गम्भीर गीता का सार सुनाते मधुसूदन की छवि प्रकट होती है । भक्ति रस से इतर भाव के  माहिया देखिए -

मन फिरता मतवाला/ चख ली है तेरे/ दो नैनों की हाला
हर मौसम प्यारा है/ क्या डरना साथी जब साथ तुम्हारा है
खुशियों का रंग भरा/ तेरा साथ मिला/ मन गीतों का निखरा

शब्द साधना में रत कवयित्री प्रेमरस से जब, छंद का शृंगार करती हैं तब प्रणय की ऊष्मा मन के भावों को पिघलाने लगती है यह माहिया, प्रीतम के प्रति, कवयित्री का अटूट विश्वास और समर्पण भाव प्रकट करते हैं कवयित्री ने प्रणय दीप जलाकर अंतस के  प्रेम को प्रकट करने का जो प्रयास किया है उसमें वह सफल हुई है जब माहिया छंद में, प्रेम की स्वर लहरियाँ गूँजती हैं तब इनकी मधुरता और भी बढ़ जाती है

गागर मत छलकाना / हैं अनमोल प्रिये/ मोती मत ढुलकाना
क्या करना है जीकर / तेरे बिन सजना / यूँ आँसू पी –पीकर
बिगड़े सुरताल सभी/ पर उस पत्थर ने/ पूछा ना हाल कभी
गुलजार कतारें थी / ख्वाब तभी टूटा / जब पास बहारें थी
कवि हृदय अनेक अनुभूतियों की उद्गमस्थली है एक संवेदनशील हृदय अगर प्रेमिका की उमंगे महसूस करता है तो एक विरहिणी की पीड़ा का अहसास भी कर सकता हैउक्त माहिया छन्दों में कवयित्री ने विरह-वेदना के जो भाव प्रकट किये है उनमें करुण रस की प्रधानता का बोध होता है । अब हास्य का पुट देखिए-

कहने से डरते हो/ जान गई जानाँ/ तुम मुझपे मरते हो
यूँ तो तुम रानी हो/ पीतल की गगरी/ सोने का पानी हो
मौका है मेले का / ले चल साथ मुझे/ क्या काम अकेले का
ये तय इस बार किया/ मैं जाती मैके / घेरो घर-बार पिया
मत बात करो खोटी/ तुम घूमों जग में /  मैं घर सेकूँ रोटी
दुखती अँखियाँ मेरी/ फोन मुआ तेरा/ कितनी सखियाँ तेरी

निःसंदेह भारतीय संस्कृति के अनेक लोकगीत का आधार हास्यरस रहा है माहिया भी पंजाब का एक लोकगीत है हास्य, माहिया छंद का प्रधान रस है प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी की मधुर नोकझोंक में पंजाबी भाषा में अनेक माहिया रचे गए हैं और यही छेड़छाड़ लोकगीतों में लोकरंजन का आधार रही है उपर्युक्त माहिया प्रेम, मनुहार, मीठी अनबन से सराबोर हैं पत्नी द्वारा पति को जग भर में घूमने का मीठा ताना देना तथा फोन को मुआ कहकर छेड़ने का अंदाज होठों पर मधुर मुस्कान छोड़ जाता है  प्रीतम द्वारा प्रेमिका को पीतल की गगरी कह सम्बोधित करना बहुत सुंदर बन पड़ा है कवयित्री ने अपनी भारतीय लोकगीत परम्परा को सहेज कर इसे पुनः संरक्षित किया है

पाहन पर दूब उगी/ ‘मेल’ मिली हमको/ उनकी कल प्रेम पगी ।
जीवन को होम किया/ पर जिद ने मेरी/ पत्थर को मोम किया ।
कवयित्री नए युग में नई तकनीक “मेल” द्वारा प्रेमी से प्रेम-वार्ता करती प्रतीत होती हैं । आशावान कवयित्री आत्मविश्वास से भर कर पत्थर को मोम करने का सामर्थ्य रखती है । इन माहिया छन्दों में कवयित्री के स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय का परिचय मिलता है । रिश्तों से परिवार और परिवार से समाज कैसे सँवरता है , देखिए-
आँचल की झोली में/ अक्षर ज्ञान मिला/ माँ तेरी बोली में ।
चंदा था रोटी में/ माँ कितने किस्से/ गूँथे है चोटी में
बदरी तो जा बरसे/ सुन ,भैया बहना/ राखी पे क्यों तरसे ।
दमके नैहर मेरा / खूब सजे भाभी/ शृंगार अमर तेरा ।

माँ की ममता का स्पर्श और बचपन के मधुर क्षण याद कर कवयित्री ने मनभावन माहिया रचे हैं। रिश्तों-नातों की मधुरता तथा त्योहारों की सुगन्ध मानव जीवन को आनन्दमय बना देती है । यह माहिया जीवन के गीतों जैसे प्रतीत होते हैं ।
थोड़ी मजबूरी थी/ सीमा की रक्षा/ भी बहुत जरूरी थी ।
कितनी बरसात हुई/ वीर शहीदों से / सपने में बात हुई ।
लिख गीत जवानों के/ जिनके दम पर हैं/ मौसम मुस्कानों के ।

 देश वीर शहीदों को समर्पित उपर्युक्त माहिया मन भूमि को नम कर देते हैं । जब कवयित्री शहीदों के परिवार की पीड़ा व्यक्त करती है उसे पढ़कर वीरों के बलिदान को बार-बार नमन करने को मन करता हैं। कर्त्तव्य के खातिर अपनी जान पर खेलकर देश की रक्षा करने वाले वीर जवानों का यशगान कर कवयित्री उनके त्याग समर्पण को माहिया छंद द्वारा अपनी श्रद्धा-सुमन समर्पित करती है।
झरने का नाद सुनो / मौन रहो मन से/ कोई संवाद बुनो ।
नस-नस में घोटला/ तन उनका उजला/ पर मन कितना काला ।
कैसे हालात हुए/ अब विख्यात यहाँ/ श्रीमन् कुख्यात हुए ।

लगभग सभी विषयों पर कवयित्री ने महिया रचे हैं । माहिया में कभी जीवन-दर्शन के रंग बिखर जाते हैं तो कभी विरोध के स्वर सुनाई देते हैं । ‘नस-नस में घोटला’ माहिया द्वारा देश की वर्तमान स्थिति का संजीव चित्रण किया गया है। आज मानव अपने पथ से भटक, यश को  अपयश  में बदल रहा है। यह देख कवयित्री कलियुग के पथभ्रष्ट मानव का वर्णन करती है

मुझे विश्वास है “तुमसे उजियारा है” माहिया छंद-संग्रह छंद परम्परा को आगे बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगा । आधुनिक कवियों में माहिया जैसे लोकछन्दों की रचना के प्रति यह संग्रह आकर्षण उत्पन्न कर उन्हें संरक्षित करने में बड़ा योगदान देगा । यह आधुनिक रचनाकारों का कर्त्तव्य है कि हमारी अनमोल निधि ‘छंद’ अपने सही स्वरूप में अगली पीढ़ी तक पहुँचे, उसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु कवयित्री का यह प्रयास अवश्य रंग लाएगा । हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का रमणीय, मनहर आवरण-पृष्ठ बहुत कुछ कह जाता है । निश्चय ही यह संग्रह पाठक वर्ग में अपना विशिष्ट स्थान बनाएगा । इन्ही मंगलकामनाओं के साथ मैं कवयित्री डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा जी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ ।
सुनीता काम्बोज

कृति – तुमसे उजियारा है (माहिया छन्द-संग्रह)

कवयित्री – डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
प्रकाशक- हिंदी साहित्य निकेतन
16 साहित्य विहार
बिजनौर (उ.प्र.)
सम्पर्क – 01342-263232
पृष्ठ- 120; मूल्य- 225/-
समीक्षक – सुनीता  काम्बोज

143- 'तुमसे उजियारा है' पर डॉ. कुँवर दिनेश सिंह जी


पुस्तक समीक्षा


डॉ. कुँवर दिनेश सिंह

माहिया तीन पंक्तियों का छन्द है, जिसमें पहली और तीसरी पंक्तियों में बारह-बारह मात्राएँ और दूसरी पंक्ति में दस मात्राएँ होती हैं। प्राय: तीनों ही पंक्तियों में चरण के आदि और अंत में गुरू का प्रयोग उत्तम माना जाता है ।  संयोग-वियोग, दोनों पक्षों से युक्त शृँगार रस व करुण रस से भरे इस छन्द का उदाहरण पंजाबी लोकगीत की एक लोकप्रिय विधा के रूप में देखा जा सकता है। पंजाबी से इस छन्द को उर्दू में अपनाया गया है।  हिन्दी के कुछ कवियों ने हाल ही में इस विधा में प्रयोग किए हैं। चूँकि "माहिया" का सीधा सम्बन्ध गायन/गेयता से है; इसमें मात्राओं का हेर-फेर रहता है। मुझे साहिर लुधियानवी के लिखे , मुहम्मद रफ़ी द्वारा गाये , एक माहिया की पंक्तियाँ स्मरण आती हैं:  दिल लेके दग़ा  देंगे / यार हैं मतलब के / ये देंगे तो क्या देंगे” (फ़िल्म: नया दौर, 1957) इनमें लिखित रूप में मात्राओं का वाञ्छित क्रम नहीं दीख पड़ता, लेकिन गेयता है। इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण है ग़ुलाम अली द्वारा गाया माहिया: बाग़ों में पड़े झूले / तुम भूल गए हम को / हम तुम को नहीं भूले…” उपरोक्त दोनों उदाहरणों में लिखित रूप में मात्राओं का संयोजन नहीं मिलता है, लेकिन वाचन/गायन में उर्दू के अरूज़ के मुताबिक वज़न को बराबर लाने के लिए मात्रा गिरा दी जाती है और तक़्तीअ और वर्ण-विन्यास करने से माहिया की मात्राओं का क्रम समझा जा सकता है। । हिन्दी में कवियों ने मात्राओं के 12-10-12 के क्रम में ही माहिया रचा है ।

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा के सद्य: प्रकाशित माहिया-संग्रह "तुमसे उजियारा है" में छन्दोबद्ध माहिया हैं, जिनमें शृँगार सहित अन्य रस भी उपस्थित हैं; तथा प्रणय के अतिरिक्त प्रकृति-प्रेम व समाज के कुछ सरोकार भी हैं। कहीं-कहीं वैचारिकता व दार्शनिक संवेदना भी बलवती हो उठती है। जैसा कि संग्रह का प्रथम माहिया कहता है: "तुमसे उजियारा है / गीत मधुर होगा / जब मुखड़ा प्यारा है" (पृष्ठ 15), नि:सन्देह यह मुखड़ा संग्रह की रचनाओं के सौन्दर्य को अनावृत्त करता है। सभी माहिया सहजत: हृदय में उतर जाते हैं। छन्द के नियमों की अनुपालना करते हुए, कविताओं में भाव-प्रवाह सहज रूप से बना हुआ है। बड़े गम्भीर मुद्दे को भी ये माहिया सरलता से अभिव्यक्त करते हैं।
आज के युग में व्याप्त वैयक्तिकता व अहंमन्यता के कारण मानवता न केवल बाह्य रूप में अपितु आन्तरिक स्तर पर भी विभक्त है, जैसा कि इस माहिया में व्यक्त है:

ऊँची दीवारें हैं / उनसे भी ऊँची / मन की मीनारें हैं (पृ. 16)

समाज की नकारात्मक सोच से आहत प्रेमी-हृदय की वेदना इस माहिया में देखे बनती है: फूलों ने यारी की / थी बदनाम हवा / झरना लाचारी थी (पृ. 24)  प्रेमी-युगल के परस्पर अविश्वास अथवा मतभेद से बिखरते सम्बन्ध का खेद इस रचना में देखिए:

गुलज़ार क़तारें थीं / ख़्वाब तभी टूटा / जब पास बहारें थीं (पृ. 52)

सतत बदलते समय के साथ स्वयं को भी बदल लेना जीवन में प्रसन्नता एवं सफलता का द्योतक है; बीती बातों को भुलाकर आगे बढ़ते जाने का संदेश इस माहिया में देखा जा सकता है:

रुख़ मोड़ लिया हमने / कल की बातों को / कल छोड़ दिया हमने (पृ. 52)

संग्रह के 36 माहिया देश की सुरक्षा में तैनात सैनिक-वीरों को समर्पित हैं: "मन ही मन मान करे / ये भारत माता / तुझ पर अभिमान करे" (पृ. 57) 26 माहिया "माँ के चरणों में" समर्पित हैं: "लौटे घर शाम हुए / माँ के चरणों में / फिर चारों धाम हुए" (पृ. 70) माँ की सहनशक्ति व त्याग-भावना को इन पंक्तियों में मार्मिक ढंग से कहा गया है:

ख़ुशियों का नीर बहे / जन्म दिया जिस पल / माँ कितनी पीर सहे (पृ. 66)

माँ-बेटी के सम्बन्ध के साथ-साथ बहन-भाई व पति-पत्नी के सम्बन्ध पर भी कई रचनाएँ हैं। नारीत्व पर बहुत-सी रचनाएँ हैं। समाज में नित शोषित नारी की दशा पर संसार के रचयिता को एक उलाहना इन पंक्तियों में देखें: "रचना क्या ख़ूब रची / दुनिया में नारी / बग़िया में दूब रची" (पृ. 85)
"मौसम की मर्यादा..." शीर्षक से 27 माहिया प्रकृति के विभिन्न क्रिया-कलापों को दार्शनिकता के साथ चित्रित करते हैं: "हासिल क्या करना है / तम का जुर्माना / सूरज को भरना है" (पृ. 97)
जैसा कि इस संग्रह के आरम्भ में "मुखड़ा प्यारा है", वैसे ही अन्त में भी मुखड़े की सुषम-छवि मिलती है: "मन तो मतवाला है / गोरे मुखड़े पे / तिल काला-काला है" (पृ. 117) जहाँ काला तिल सौन्दर्य के वर्धमान अथवा प्रहरी के रूप में कल्पित है।

नि:सन्देह यह माहिया-संग्रह काव्य-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। इसे पढ़ने के बाद, पुस्तक-परिचय में जाने-माने कवि-साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज हिमांशु की टिप्पणी "माहिया की गेयता और छन्द पर आपका (डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा का) पूरा अधिकार है" समर्थन के योग्य है।  वलसाड, गुजरात से सम्बन्ध रखने वाली कवयित्री, डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा हाइकु, सेदोका, ताँका, चोका गीत, नवगीत, दोहा, मुक्तक, ग़ज़ल इत्यादि काव्य की विभिन्न विधाओं में लिखती हैं, और देश की कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। माहिया छन्द में उनका यह काव्य-संग्रह पाठकों को पसन्द आएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।



तुमसे उजियारा है (माहिया-संग्रह): डॉ. ज्योत्स्ना शर्माहिन्दी साहित्य निकेतनबिजनौर (उ.प्र.), 2018, पृष्ठ 117, मूल्य 240 रुपए

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डॉ. कुँवर दिनेश सिंह
सम्पादक: हाइफ़न
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शिमला: 171 004 हिमाचल प्रदेश।
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