भावों की
धारा है – तुमसे उजियारा है
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा जी की साहित्यिकी माला में "तुमसे
उजियारा है" माहिया छन्द-संग्रह रूपी तीसरा मोती सजने से उसकी चमक और बढ़ गई
है । एकल हाइकु-संग्रह और एकल दोहा-संग्रह के बाद, उनका माहिया छन्द-संग्रह
प्रकाशन में आया है । यह संग्रह इसलिए भी बहुत खास है क्योंकि
यह किसी महिला रचनाकार का ‘प्रथम माहिया छन्द संग्रह’ है ।जिस प्रकार की भावनात्मक खनक उनके बालगीतों, छंदों,गीत, ग़ज़लों
में सुनाई देती है ,वैसी ही संवेदनाओं का स्पर्श मैंने इस माहिया-संग्रह को पढ़कर महसूस किया है । डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा जी का गद्य जितना
प्रभावशाली है उनकी पद्य रचनाएँ भी उतनी ही आकर्षक और परिपक्व हैं । डॉ. ज्योत्स्ना जी की पुस्तक में संकलित माहिया इंद्रधनुषी रंगों की तरह अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उनके काव्य में जीवन-दर्शन,
प्रकृति-प्रेम, मरती संवेदनाओं का दर्द आदि भाव के दर्शन होते हैं । माहिया में कभी जीवन की गहन
अनुभूतियों की झलक मिलती है तो कभी हास्य, प्रेम के रंग की रंगोली तो कभी विरह की व्यंजना है । देशप्रेम से
परिपूर्ण माहिया पढ़कर मन द्रवीभूत हो जाता हैं भाव और शिल्प दोनों ही
दृष्टिकोण से यह माहिया छंद-संग्रह एक अनुपमकृति है। माँ वीणा वाली, गणनायक, कान्हा जी, की वन्दना कवयित्री ने बहुत भाव से की है। उनके भक्ति भाव का परिचय निम्न माहिया पढ़कर महसूस किया जा
सकता है -
भक्तों को मान दिया/ मोह पड़े अर्जुन/ गीता का ज्ञान दिया ।
मन उजला तन काला/ मोह गया मोहन/ मन, बाँसुरिया वाला ।
दिल खूब चुराता है/ लाल यशोदा का / फिर भी क्यों भाता है ।
जादूगर कैसे हो/ जो जिस भाव भजे / उसको तुम वैसे हो ।
उक्त माहिया छंदों में कवयित्री की, कान्हा जी के प्रति अटूट आस्था का परिचय मिलता है । कवयित्री ने
अपने इष्ट की आराधना शब्दों के पुष्पों से की
है। यह माहिया छन्द पढ़कर आँखों के आगे कान्हा जी की लीलाएँ नृत्य करने लगती
हैं । कभी चंचल रसिया कान्हा जी के दर्शन होते हैं तो कभी धीर-गम्भीर
गीता का सार सुनाते मधुसूदन की छवि प्रकट होती है । भक्ति रस से इतर भाव के माहिया देखिए -
मन फिरता मतवाला/ चख ली है तेरे/ दो नैनों की हाला ।
हर मौसम प्यारा है/ क्या डरना साथी जब साथ तुम्हारा है ।
खुशियों का रंग भरा/ तेरा साथ मिला/ मन गीतों का निखरा ।
शब्द साधना में रत कवयित्री प्रेमरस से जब, छंद का शृंगार करती हैं
तब प्रणय की ऊष्मा मन के भावों को पिघलाने लगती है। यह माहिया, प्रीतम
के प्रति, कवयित्री का अटूट विश्वास और समर्पण भाव प्रकट करते हैं। कवयित्री ने प्रणय
दीप जलाकर अंतस के प्रेम को प्रकट करने का
जो प्रयास किया है उसमें वह सफल हुई है । जब माहिया छंद में, प्रेम की स्वर
लहरियाँ गूँजती हैं तब इनकी मधुरता और भी बढ़ जाती है।
गागर मत छलकाना / हैं अनमोल प्रिये/ मोती मत ढुलकाना ।
क्या करना है जीकर / तेरे बिन सजना / यूँ आँसू पी –पीकर ।
बिगड़े सुरताल सभी/ पर उस पत्थर ने/ पूछा ना हाल कभी ।
गुलजार कतारें थी / ख्वाब तभी टूटा / जब पास बहारें थी ।
कवि हृदय अनेक अनुभूतियों की उद्गमस्थली है । एक संवेदनशील हृदय
अगर प्रेमिका की उमंगे महसूस करता है तो एक विरहिणी की पीड़ा का अहसास भी कर सकता
है। उक्त माहिया छन्दों में कवयित्री ने विरह-वेदना के जो भाव
प्रकट किये है। उनमें करुण रस की प्रधानता का बोध होता है । अब हास्य का पुट देखिए-
कहने से डरते हो/ जान गई जानाँ/ तुम मुझपे मरते हो ।
यूँ तो तुम रानी हो/ पीतल की गगरी/ सोने का पानी हो ।
मौका है मेले का / ले चल साथ मुझे/ क्या काम अकेले का ।
ये तय इस बार किया/ मैं जाती मैके / घेरो घर-बार पिया ।
मत बात करो खोटी/ तुम घूमों जग में / मैं घर सेकूँ रोटी ।
दुखती अँखियाँ मेरी/ फोन मुआ तेरा/ कितनी सखियाँ तेरी ।
निःसंदेह भारतीय संस्कृति के अनेक लोकगीत का आधार हास्यरस रहा है । माहिया भी पंजाब का
एक लोकगीत है। हास्य, माहिया छंद का प्रधान रस है प्रेमी-प्रेमिका या पति-पत्नी
की मधुर नोकझोंक में पंजाबी भाषा में अनेक माहिया रचे गए हैं और यही छेड़छाड़ लोकगीतों में लोकरंजन का आधार रही है । उपर्युक्त माहिया प्रेम, मनुहार, मीठी अनबन से सराबोर हैं । पत्नी द्वारा पति
को जग भर में घूमने का मीठा ताना देना तथा फोन को मुआ कहकर छेड़ने का अंदाज होठों
पर मधुर मुस्कान छोड़ जाता है । प्रीतम द्वारा
प्रेमिका को पीतल की गगरी कह सम्बोधित करना बहुत सुंदर बन पड़ा है । कवयित्री ने अपनी
भारतीय लोकगीत परम्परा को सहेज कर इसे पुनः संरक्षित किया है ।
पाहन पर दूब उगी/ ‘मेल’ मिली हमको/ उनकी कल प्रेम
पगी ।
जीवन को होम किया/ पर जिद ने मेरी/ पत्थर को मोम
किया ।
कवयित्री नए युग में नई तकनीक “मेल” द्वारा प्रेमी
से प्रेम-वार्ता करती प्रतीत होती हैं । आशावान कवयित्री आत्मविश्वास से भर कर
पत्थर को मोम करने का सामर्थ्य रखती है । इन माहिया छन्दों में कवयित्री के स्वाभिमान, दृढ़ निश्चय का
परिचय मिलता है । रिश्तों से परिवार और परिवार से
समाज कैसे सँवरता है , देखिए-
आँचल की झोली में/ अक्षर ज्ञान मिला/ माँ तेरी
बोली में ।
चंदा था रोटी में/ माँ कितने किस्से/ गूँथे है चोटी में ।
बदरी तो जा बरसे/ सुन ,भैया बहना/ राखी पे क्यों
तरसे ।
दमके नैहर मेरा / खूब सजे भाभी/ शृंगार अमर तेरा ।
माँ की ममता का स्पर्श और बचपन के मधुर क्षण याद
कर कवयित्री ने मनभावन माहिया रचे हैं। रिश्तों-नातों की मधुरता तथा त्योहारों की
सुगन्ध मानव जीवन को आनन्दमय बना देती है । यह माहिया जीवन के गीतों जैसे प्रतीत होते हैं ।
थोड़ी मजबूरी थी/ सीमा की रक्षा/ भी बहुत जरूरी थी ।
कितनी बरसात हुई/ वीर शहीदों से / सपने में बात
हुई ।
लिख गीत जवानों के/ जिनके दम पर हैं/ मौसम
मुस्कानों के ।
देश वीर
शहीदों को समर्पित उपर्युक्त माहिया मन भूमि को नम कर देते हैं । जब कवयित्री शहीदों के परिवार की पीड़ा व्यक्त करती है उसे
पढ़कर वीरों के बलिदान को बार-बार नमन करने को
मन करता हैं। कर्त्तव्य के खातिर अपनी जान पर खेलकर देश की रक्षा करने वाले वीर
जवानों का यशगान कर
कवयित्री उनके त्याग समर्पण को माहिया छंद द्वारा अपनी श्रद्धा-सुमन समर्पित करती है।
झरने का नाद सुनो / मौन रहो मन से/ कोई संवाद बुनो
।
नस-नस में घोटला/ तन उनका उजला/ पर मन कितना काला ।
कैसे हालात हुए/ अब विख्यात यहाँ/ श्रीमन् कुख्यात
हुए ।
लगभग सभी विषयों पर कवयित्री ने महिया रचे हैं ।
माहिया में कभी जीवन-दर्शन के रंग बिखर जाते हैं तो कभी विरोध के स्वर सुनाई देते हैं । ‘नस-नस में घोटला’ माहिया द्वारा देश की वर्तमान स्थिति
का संजीव चित्रण
किया गया है। आज मानव अपने पथ से भटक, यश को
अपयश में बदल रहा है। यह देख
कवयित्री कलियुग के पथभ्रष्ट मानव का वर्णन करती है ।
मुझे विश्वास है “तुमसे उजियारा है” माहिया छंद-संग्रह छंद परम्परा को आगे बढ़ाने
में सहायक सिद्ध होगा । आधुनिक कवियों में माहिया जैसे लोकछन्दों की रचना के प्रति
यह संग्रह आकर्षण उत्पन्न कर उन्हें संरक्षित करने में बड़ा योगदान देगा । यह
आधुनिक रचनाकारों का कर्त्तव्य है कि हमारी अनमोल निधि ‘छंद’ अपने सही स्वरूप में
अगली पीढ़ी तक पहुँचे, उसी लक्ष्य की पूर्ति हेतु कवयित्री का यह प्रयास अवश्य रंग
लाएगा । हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का रमणीय, मनहर
आवरण-पृष्ठ बहुत कुछ कह जाता है । निश्चय ही यह संग्रह पाठक वर्ग में अपना विशिष्ट
स्थान बनाएगा । इन्ही मंगलकामनाओं के साथ मैं कवयित्री डॉ. ज्योत्स्ना
शर्मा जी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हूँ ।
सुनीता काम्बोज
कृति – तुमसे उजियारा है (माहिया छन्द-संग्रह)
कवयित्री – डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
प्रकाशक- हिंदी साहित्य निकेतन
16 साहित्य विहार
बिजनौर (उ.प्र.)
सम्पर्क – 01342-263232
पृष्ठ- 120; मूल्य- 225/-
समीक्षक – सुनीता काम्बोज