डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
गौमुख से गंगा चली , बह सागर की ओर ,
देख रही माँ भारती ,होकर भाव –विभोर |
होकर भाव- विभोर , हुई हर्षित भू पावन ,
नित-नित संध्या भोर , सुहावन तट मन-भावन |
जिसका केवल ध्यान ,भरे जीवन को सुख से ,
कर तन-मन अम्लान , चली गंगा गौमुख से ||
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चित्र गूगल से साभार