Sunday, 21 April 2013

बनो न चिड़िया






डॉ ज्योत्स्ना शर्मा

कहीं अकेली कभी न जाना
ये दुनिया बहुत सताती है ,
तनहाई में अक्सर बिटिया
गुड़िया को यह समझाती है |

दिखे समाधि गाँधी जी की
छू आने की जिद मत करना ,
आज़ादी का जश्न देखने
अब जाने की जिद मत करना
कल तक थी जो दिल वालों की
अब तो बस दिल दहलाती है |

तनहाई में अक्सर बिटिया
गुड़िया को यह समझाती है |

बचकर भला किधर जाओगी
डर जाओगी ,मर जाओगी
याद रहे ये बात किसी से
कुछ न कभी लेकर खाओगी
बनो न चिड़िया, बनो शेरनी
ये कह कर दिल बहलाती है

तनहाई में अक्सर बिटिया
गुड़िया को यह समझाती है
-0-
20-04-13

Thursday, 11 April 2013

कहाँ विश्राम लिखा !( नव संवत्सर पर विशेष)


डॉ•ज्योत्स्ना  शर्मा
सुन सखी ! कहाँ विश्राम लिखा !
मैंने तो आठों याम लिखा ।
पथ पर कंटक,  चलना होगा,
अँधियारों में जलना होगा ।
मन- मरुभूमि सरसाने को 
हिमखंडों- सा, गलना होगा ।
शुभ, नव संवत्सर हो सदैव ,
संकल्प यही सत्काम लिखा।।
केवल जीने की चाह नहीं ,
भरनी मुझको अब आह नहीं ।
फूल और कलियाँ मुस्काएँ
गूँजे न कोई कराह कहीं ।
नव आगत तेरे स्वागत में 
पल का प्यारा पैगाम लिखा ।।
समय मिलेगा फिर बाँचेगा
मेरी भी कापी जाँचेगा।
रहे हैं कितने प्रश्न अधूरे ;
कितने उत्तर सही हैं पूरे ।
जीवन के खाली पन्नों पर -
साँसों का बस संग्राम लिखा ।।
मैंने तो आठों याम लिखा ,
सुन सखी ! कहाँ विश्राम लिखा !
-0-