Wednesday, 24 August 2016

जादूगर कैसे हो !







डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

1
उमड़ेफिर बरस गए
ये नैना कान्हा
दर्शन को तरस गए ।
2
दर्पण से धूल हटा
झलक उठे मन में
मोहन की मधुर छटा ।
3
दिल खूब चुराता है
लाल यशोदा का
फिर भी क्यों भाता है ।
4
दाऊ के भैया ने
सबको त्राण दिया
उस नाग-नथैया ने ।
जादूगर कैसे हो
जो जिस भाव भजे
उसको तुम वैसे हो ।
6
इक राह दिखाई है
मीत सुदामा के
क्या रीत निभाई है।
7
मन उजला तन काला
मोह गया मोहन
मन, बाँसुरिया वाला ।
8
मुख अमरित का प्याला
कितनी छेड़ करे
यह नटखटगोपाला !
9
भोली -सी सूरत पे
रीझ गई रसिया
मैं प्यारी मूरत पे ।
10
भक्तों को मान दिया ।
मोह पड़े अर्जुन
गीता का ज्ञान दिया ।

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(चित्र गूगल से साभार ) 

Sunday, 14 August 2016

शुभ स्वतन्त्रता दिवस !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

खूब सजाना जनतंत्र के चारों ही आधारों को ,
और सज़ा देनी है पहले भीतर के ग़द्दारों को
नाहक छेड़ करें ना दम्भी  ,दूध छठी का याद करें
पाठ पढ़ाना है कुछ ऐसा उन कुटिलों ,मक्कारों को।।1

अभिलाषा है आज लेखनी,सरस मधुर रसधार बने
वक़्त पड़े तो खूब गरजती वीरों की हुंकार बने
करके अर्चन अरिमुण्डों से जननी का शृंगार करें
भीतर बाहर के घाती को दोधारी तलवार बने ।।2
         
पूरे करने हैं जननी के, सपने,  सब अरमान हमें
उसकी ख़ुशियों पर करने हैं अपने सुख क़ुर्बान हमें
बोस,जवाहर,गाँधी बिस्मिल नाज बहुत हमको तुमपर
सिंह भगत ,आज़ाद ,याद हैं वीरों के बलिदान हमें।3