Sunday, 25 January 2015

शुभ गणतंत्र दिवस !



डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


पवन भी गाये आज वन्दना तुम्हारी झूम ,

सरस दिशा-दिशा सनेह से दुलारती |

हरा-भरा लंहगा सुनहरी लाई ओढ़नी ,

कलियों को गूँथ-गूँथ अलकें संवारती |

मन में भरी उमंग साजते हैं सप्तरंग ,

रुचिर घटा भी देख सुरधनु वारती |

केसरिया ,सित ,हरा ,भोग,योग ,त्याग भरा ,
मन में बसे हैं मेरे तीन रंग भारती ||




नमन है बार-बार शारदे माँ देना तार ,

सुन लेना इतनी सी विनय हमारी है |

भरके उमंग कहे कलम हमारी आज ,

कसम निभाने की हमारी भी तो बारी है |

भारत से ,भारती माँ ! जाने की ज़रा न चाह ,

जब तक मुदित न , जननी निहारी है |

आज बंधनों से आप ,खोल दीजिए न हाथ  ,

एक-एक वीर मेरा सैकड़ों पे भारी है ||

हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ 
ज्योत्स्ना शर्मा 
चित्र गूगल से साभार

 




Tuesday, 20 January 2015

ड्योढ़ी पर दीप जला



डॉ०ज्योत्स्ना शर्मा
1
ड्योढ़ी पर दीप जला
हँसता उजियारा
तम के मन ख़ूब खला ।
2
बैरन हैं ये सखियाँ
लब ख़ामोश रहें
चुग़ली खातीं अँखियाँ ।
3
मन-उत्सव मन जाते
जो तेरे मन का
अनमोल रतन पाते ।
4
है कुफ़्र सितारों का
बीत गया तन्हा
ये वक़्त बहारों का ।
5
थोड़े से हैं खारे
आए हैं दिल से
सुख-दुख के हरकारे ।
6
देखूँ खिलती कलियाँ
याद बहुत आएँ
बाबुल तेरी गलियाँ ।
7
फूलों की थी ढेरी
शूल चुभाती है
यादों की झरबेरी ।
8
साथी ना संगी हैं
ये सुख दुनिया के
अहसास पतंगी हैं ।
9
मुश्किल-सा रस्ता है
बिखरी यादों का
ये दिल गुलदस्ता है ।
10
कैसा यह खेल किया
झूठे सपनों से
अँखियों का मेल किया ।

Wednesday, 14 January 2015

शुभ मकरसंक्रांति !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 




दिन भर जलना तपना, ढलना
 
होते नहीं निराश
 
कितना कठिन समय हो
 
रवि तुम! कब लेते अवकाश!

कुहर, तुहिन कण, बरखा, बादल
 
मिलकर करें प्रहार
 
अम्बर के एकाकी योद्धा
 
कभी न मानो हार!
 
अवनि से आकाश तलक दो
 
सबको तेज, प्रकाश!
 

धुन के पक्के, जान गए सब
 
अकड़ू हो थोड़े
 
भेजा करते हो सतरंगी
 
किरणों के घोड़े
 
जग उजियारा करें, मिटा दें
 
तम को रहे तलाश!

उलझन ले हम आए दिनकर
 
पास तुम्हारे हैं
 
मानव-मन में दानवता ने
 
पाँव पसारे हैं
 
जुगत बताओ हमको इसका
 
कैसे करें विनाश!

- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
१२ जनवरी २०१५

चित्र गूगल से साभार