चंदा-सूरज
मुट्ठी में बाँध लिए
सागर सारे
पर्वत नाप लिए
अँधियारों पे
विजय पा गए हो
उजालों में क्यूँ
यूँ भरमा गए हो ?
हवा, धूप भी
दासियाँ हों तुम्हारी
ममता नहीं
स्वर्ण की आभ प्यारी
ऊँचे भवन
सारा सुख खजाना
खुशियों भरे
प्रीत के गीत गाना
व्यर्थ ही तो हैं
दे ही ना पाये जब
माता-पिता को
तुम दो वक्त खाना
भूले गले लगाना ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार)