डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
चिरंतन है भारतीय
संस्कृति और चिंतन धारा ,जिसमें लोक एवं समाज के सर्वांगीण
विकास के परिप्रेक्ष्य में समय-समय पर अनेक पर्वों-उत्सवों का विधान किया गया है ।वासंतिक
एवं शारदीय नवरात्र भी ऐसे ही षाण्मासिक यज्ञ हैं ।चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में वासंतिक
तथा आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि पर्यन्त शारदीय नवरात्र
हैं, दशमी तिथि तो 'विजयदशमी' है ही ।चैत्र और आश्विन मास में ऋतु विकास होता है ,नई
फसलें आती हैं एतदर्थ ईष्ट को नवान्न यज्ञादि द्वारा समर्पित कर उत्साहपूर्वक पूजन
आराधन किया जाता है ।
श्री भगवद्गीता
में कहा गया है -
"इष्टां
भोगान ही वो देवा यास्यन्ते यज्ञ भाविता ,
तैर्दत्ता न प्रदायैभ्यो
यो भुक्ते स्तेन एव स ।".....अर्थात यज्ञादि से सम्मानित देवता मनुष्यों
की इच्छाओं को पूरा करेंगें किन्तु जो मनुष्य देवों द्वारा प्रदत्त पदार्थों को
उनको अर्पित किए बिना उपभोग करे वह तस्कर है ।अतः प्रभु से प्राप्त पदार्थ पहले
अपने ईष्ट -अभीष्ट देव को ही उत्साह पूर्वक समर्पित किए जाते हैं ।ऐसा ही पर्व
नवरात्र पर्व भी है ।
अस्तु,
नवरात्र पर्व में विशेष रूप से भगवती देवी दुर्गा की ही आराधना का
विधान है क्योंकि नवरात्र में ही देवी दुर्गा का अवतार हुआ था ।श्री दुर्गासप्तशती
के प्रथम अध्याय में मेधा मुनि ने राजा सुरथ और वैश्य के प्रति इस आख्यान का
निरूपण किया ।ऋषि ने कहा ...
"नित्यैव सा जगन्मूर्तिस्तया सर्वमिदं ततं ।।६४
तथापि तत्समुत्पत्तिर्बहुधा श्रूयतां मम
देवानां कार्यसिद्ध्यर्थमाविर्भवति सा यदा ।।६५
उत्पन्नेति तदा लोके सा नित्याप्यभिधीयते
योगनिद्रां यदा विष्णुर्जगत्येकार्णवीकृते ।।६६ "
...अर्थात वास्तव में तो वह देवी नित्यास्वरूपा ही
हैं ।सम्पूर्ण संसार उन्ही का रूप है तथा उन्होंने समस्त
विश्व को व्याप्त कर रखा है ,तथापि उनका प्राकट्य अनेक
प्रकार से होता है ।वह मुझसे सुनो ।यद्यपि वे नित्य और अजन्मा हैं फिर भी देवताओं
का कार्य सिद्ध करने के लिए प्रकट होने पर लोक में उत्पन्न हुई कहलाती हैं ।महाप्रलय
के उपरान्त चारों ओर जल ही जल व्याप्त था । शेषशैया पर योग निद्रा में लीन भगवान
श्री विष्णु जी की नाभि से कमल और कमल से ब्रह्मा जी का प्रादुर्भाव हुआ ।तदन्तर
प्रभु के कर्ण-मैल से मधु और कैटभ नामक दो असुर उत्पन्न हुए ।दोनों के ब्रह्मा जी
को मारने के लिए उद्यत होने पर ब्रह्मा जी ने भक्ति पूर्वक योगनिद्रा की स्तुति की
।योगनिद्रा भगवान श्री विष्णु जी के अंग प्रत्यंगों से निकल कर ब्रह्मा जी को
दर्शन देने के लिए उपस्थित हो गईं और प्रभु भी योगनिद्रा से मुक्त हो शेष शैया पर
आसीन हो गए ।तत्पश्चात ब्रह्मा जी को मारने के लिए उद्यत दोनों असुरों से प्रभु का
अनन्त काल तक बाहुयुद्ध हुआ ।भगवान की माया से मोहित
असुरों ने भगवान से कहा कि हम तुम्हारे युद्ध कौशल से प्रसन्न हैं ,इच्छित वर माँगो ।भगवान ने कहा कि यदि ऐसा है तो मुझे वर दो कि तुम दोनों
मेरे हाथ से मारे जाओ ।प्रभु की माया से मोहित दैत्यों ने चारों ओर जल ही जल देख
प्रभु से जहाँ जल न हो वहाँ उनका वध करने के लिए कहा ।प्रभु ने जंघा पर दोनों
दैत्यों का सिर रखकर चक्र से उनका वध किया ।भगवान से उत्पन्न होकर यही महामाया
दशभुजा महाकाली के रूप में प्रसिद्ध हुईं ।
एक अन्य प्रसंग में देवासुर संग्राम में देव पराजित हुए और दैत्यराज
महिषासुर स्वर्ग में देवराज इंद्र के सिंहासन पर आरूढ़ हो गए ।अत्यंत दुखी देवगणों
ने श्री ब्रह्मा जी को अग्रसर कर श्री महादेव जी और भगवान विष्णु जी से अपनी व्यथा
कही ।रोष से युक्त श्री विष्णु जी के मुख से एक दिव्य तेज प्रकट हुआ ।श्री
दुर्गासप्तशती के दूसरे अध्याय में कहा है ..
अतुलं तत्र तत्तेजः सर्वदेवशरीरजं ।
एकस्थं तदभून्नारी व्याप्तलोकत्रयं त्विषा ।।२/ १३
...इस प्रकार वह तेज श्री ब्रह्मा जी ,महादेव एवं अन्य देवताओं से उत्पन्न तेज से मिश्रित हो एक दिव्य-शक्ति
संपन्न देवी के रूप में परिणत हो गया ।दैत्यराज महिषासुर से त्रस्त देवगण भगवती के
दिव्य रूप तथा तेज को देख बहुत प्रसन्न हुए ।पुनः श्री विष्णु जी ,ब्रह्मा जी ,शिव जी तथा अन्य देवताओं ने अपने अपने
अस्त्र-शस्त्रों से अन्य शस्त्रास्त्र प्रकट कर भगवती देवी को अर्पित किए ।इस
प्रकार सर्वांग पूर्ण तेजोमयी और अस्त्र-शस्त्रों से सज्जित देवी ने महिषासुर और
उसकी आसुरी सेना का मर्दन किया तथा
आज भी अपने वचनों के अनुसार न केवल देवों के अपितु प्राणिमात्र के कल्याण के लिए
समय समय पर उपस्थित होती हैं ।
......और भी मार्कंडेय ऋषि द्वारा मनुष्यों की सब
प्रकार से रक्षा करने वाला उपाय पूछे जाने पर परमपिता ब्रह्मा जी ने देवी कवच में देवी
दुर्गा के नौ रूपों शैलपुत्री ,ब्रह्मचारिणी
,चंद्रघंटा ,कूष्मांडा ,स्कंदमाता ,कात्यायनी ,कालरात्री
,महागौरी तथा सिद्धिदात्री के आराधन का कथन किया ।नवरात्र के
प्रथम दिवस 'शैलपुत्री' के रूप में
पूजित देवी तन के साथ मानसिक दृढ़ता की प्रतीक हैं ।ब्रह्मचारिणी 'कर में कमल ,अक्षमाला ,कमण्डलु
धारण किए तपस्विनी रूपा हैं तथा ब्रह्म स्वरूप की प्राप्ति कराने वाली हैं ।आह्लादकारी
चन्द्रमा को धारण करने वाली चंद्रघंटा हैं ।कुत्सित ऊष्मा अर्थात् त्रिविध ताप
युक्त विश्व को उदर में धारण करने वाली कूष्मांडा ,स्कन्द की
माता होने से स्कंदमाता ,ऋषि कात्यायन की इच्छा पर उनके घर
प्रकट होकर पुत्रीवत व्यवहार करने वाली कात्यायनी तथा सबको मारने वाले काल का भी
विनाश करने वाली कालरात्री है ।तपस्या द्वारा महान गौरवर्ण प्राप्त करने से
महागौरी और सर्व सिद्धि प्रदायिनी होने से सिद्धिदात्री हैं ।
वस्तुतः वर्त्तमान
परिपेक्ष्य में यदि विचार करें तो अन्य पर्वों की भांति नवरात्र भी सामाजिक चेतना
का पर्व है ।भगवती दुर्गा देवी की जन्म कथा के व्याज से स्मरण कराया जाता है कि भय
मुक्त ,सुखी ,सुन्दर समाज के निर्माण
के लिए प्राणी मात्र में स्थित पुरुष एवं प्रकृति तत्त्व को व्यष्टि से समष्टि की
ओर ले जाना आवश्यक है ,मन से मन मिले रहें ।उसमें भी स्त्री
तत्त्व का सशक्तीकरण समस्त अनिष्टकारी तत्त्वों के विनाश में समर्थ होगा ।'पर्वतपुत्री 'की भांति शारीरिक ,मानसिक दृढ़ता अनाचार के विरुद्ध उसके अस्त्र हों ।अहंकार का विसर्जन कर
परिवार में सबका हित साधती ब्रह्मचारिणीवत् तप ही जीवनचर्या हो ।चन्द्रमा को मस्तक
पर लिए दशभुजाओं में अस्त्र-शस्त्र धारिणी चंद्रघंटा की भांति सौन्दर्यमयी ,शीतल तो हो परन्तु कमजोर नहीं ।सिंहस्था और अंक में कार्तिकेय को धारण
करने वाली स्कंदमाता की भांति वीर संतान प्रसविनी हो ।तेजस्विनी कूष्मांडा की तरह
जीवन को ऊर्जा से परिपूर्ण करे ।महागौरी के रूप में परम सात्विकी शक्ति ,महा विदुषी जीवन को मधुरता पवित्रता से भर दे ।कात्यायनी का स्मरण पुत्री
को महिमा मंडित कर उसके सुखद ,सुन्दर ,तेजस्वी
रूप को स्थापित करता है ।'कालरात्रि के रूप में समाज में
व्याप्त अज्ञानान्धकार को मिटाने में सर्वथा समर्थ है ।स्त्री ही समाज की ऐसी इकाई
है जो आगत किसी भी अशुभ संकेत को सबसे पहले पकड़ती है और यदि पर्याप्त सहयोग मिले
तो उसका समाधान करने की सामर्थ्य रखती है ।
सिद्धिदात्री की उपासना वास्तव में स्त्री के समाज के प्रति उस
योगदान का स्मरण कराती है जहाँ वह एक कुशल गृहिणी के रूप में संतान ,पति एवं परिवार के साथ समाज के इतर कार्य कर्त्ताओं ,कर्मचारियों के प्रति भी सहृदयतापूर्वक अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करती
हुई लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायिका होती है ।
"यत्रनार्यस्तु.....की उद्घोषणा करते भारत वर्ष
में नारी की दशा आज किसी से छुपी नहीं है ।नित नए हृदय विदारक समाचार कहीं न कहीं
सुनाई पड़ते हैं फिर भी आकाश में उड़ान भरती फ्लाइट लेफ्टिनेंट अंजली राठी ,फ़्लाइंग आफिसर प्रीति व अदिति या फिर दुर्गा शक्ति ,सुरेखा यादव ,इंदिरा ,अरुंधती
भट्टाचार्य ,सानिया , ज्वाला गुट्टा , मैरीकॉम आदि को स्मरण करते हुए कहना आवश्यक है कि अँधेरों के साथ -साथ भोर की
किरणों के संकेत हैं ,दिन तेजस्वी होगा ,बस ,नवरात्र के व्याज से शक्ति का आत्म साक्षात्कार
हो ,शक्ति पर्व मने ,खूब धूम से मने ।इति
।
(उदंती पत्रिका एवं प्रभात केसरी पत्र में प्रकाशित )
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
चित्र गूगल से साभार