डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
हसरतों का जला कारवाँ देर तक ,
देखते ही रहे हम धुआँ देर तक |
वक्त रहते बुझाईं न चिंगारियाँ ,
फिर सुलगती रहीं बस्तियाँ देर तक |
थाम ले नाखुदा यूँ भटकने न दे ,
खुद सँभलती नहीं कश्तियाँ देर तक |
क्या करें ग़म का मौसम बदलता नहीं ,
सह न पाएँगे हम तल्खियाँ देर तक |
अश्क मेरे अभी पोंछ बिटिया गई ,
याद आती रही मुझको माँ देर तक |
नाम तेरा भला आज क्या ले लिया ,
फिर महकती रही ये फिजाँ देर तक |
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( चित्र गूगल से साभार )