Tuesday, 7 March 2023

180-लौटी जो घर

(चित्र गूगल से साभार) 
 1 
कितना गुस्सा थी मैं 
किसी की नहीं सुनी 
मन का पहना , मन का खाया 
कितना शोर मचाया 
खूब भटकी 
अपनी 'आज़ादी' के साथ
 लौटी जो घर.... न जाने किन 
ख्यालों में खो गई 
और फिर .... तुम्हारे कन्धे पर 
सिर रखकर सो गई । 
 2 
 सकरी गलियों में 
बड़े-बड़े वाहन 
अटक ही जाएँगे 
 सुनो ! मन को विस्तार दो 
 तभी बड़े विचार आएंगे । 
 3 
आज के दौर में
 दीमकों ने खाई तो , 
किताब मुस्कराई 
और बोली ...चलो ! किसी के तो काम आई ।
 4 
झूठ के नगर में 
किसी ने हमारे 
प्यारे 'सच' की बात चला दी 
सब चिल्लाए , " ऐसा कुछ नहीं होता है"
 मज़े की बात हमने भी हाँ में हाँ मिला दी।

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डॉ ज्योत्स्ना शर्मा