Wednesday, 6 February 2019

141- मन का इकतारा !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा


जाने के बाद
करती रहीं यादें
मुझको याद।1

सबको भाते
सोते हुए,ख्वाब में-
मुस्काते बच्चे ।2

मत उठाना
अँगुली किसी ओर
टूटना तय ।3

कमी तो न थी
फिर भी सहेजे हैं
तेरे भी गम ।4

चलते रहे
मूँदकर आखों को
वही सही था ।5

वो कहाँ रुका
लगता था ऐसा,कि-
गगन झुका ।6


उड़ता पंछी
ताक लगाए बाज
बैठा शिकारी।7

सूरज आया
आँगन किलकता
हँसते फूल।8

अनोखे किस्से
छुपाए हुए बैठी
अँधेरी रात ।9

कैसा गुरूर
शीशे का यह घर
होना है चूर ।10
  
गाता ही रहे
मन का इकतारा
गीत तुम्हारा।11

धुंधली हुईं
कुहासे में किरणें
वक्त की चाल ।12


-०-०-०-०-०-०-

(चित्र गूगल से साभार)