Tuesday, 4 July 2023

183- वो मेरी बातों में उलझें !

 

                               (चित्र गूगल से साभार)

1

मेरी मानो हो तो ऐसा कर देना
उसके सारे घावों को तुम भर देना ।

आकर जिसमें चैन मिले , सुख पाए मन
हर बन्दे को ,अपना ऐसा घर देना  ।

पंख कटे थे कैद रहे सपने जिसके
साथ-साथ अम्बर के उसको पर देना ।

मामूली बातों पर झगड़ा ,खूँ रेज़ी
थोड़ा सा तो नरम-नरम तेवर देना  ।

वो मेरी बातों में उलझें, रुक जाएँ
मुझको भी कुछ ऐसा मीठा स्वर देना ।


2

खुश हैं शोर मचाने वाले ,क्या कहिए !
चुप हैं राह दिखाने वाले , क्या कहिए !

दीख रहे हैं  ,अचरज ! नेत्रविहीनों को,
सूरज की आँखों पर जाले , क्या कहिए !

खूब कसीदे पढ़ते रात घनेरी के ,
हाथ धूप के लगते काले ,क्या कहिए !

हमने सोचा था कुछ होंगे महफिल में
बेसुध की सुध लेने वाले, क्या कहिए !

बातें करते रहते हैं गंगाजल की
पथ चुनते मदिरालय वाले , क्या कहिए !

उनको डर जब पर्त उधेड़ी जाएगी
निकलेंगे कितने घोटाले , क्या कहिए !

करनी है सो भरनी होगी तय है मन ,
चाहे कितनी जुगत भिड़ा ले, क्या कहिए !

फेंक रहा था जाल मछेरा , मत जाते
तड़प रहे अब कौन निकाले, क्या कहिए !

नफरत मत दो , प्रेम भरो , सच्चाई दो
बच्चों के मन भोले- भाले , क्या कहिए !


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा