1
प्रेम !
क्या है प्रेम ?
यह एक ....
दिव्य अनुभूति है ।
भावों की माला का
अनमोल मोती है ।
2
प्रेम बावरा !
महफिल में बेचैन , आहें भरता
छटपटाता है ........
कभी तन्हाई में
खुद-ब-खुद मुस्कुराता है।
3
प्रेम ज़िंदगी है ,बन्दगी है
किसी को अलकें, पलकें
कंगन, बिंदिया , पायल है
कोई डूबा है इसमें ...
तो कोई प्रेम में घायल है ।
4
मिट जाता है कोई
तो कोई इसमें खोता है
यह मिलन ही नहीं
विरह में भी होता है।
सच में प्रेम ...अजर,अमर ,
अनंत रस का सोता है ।
5
वो कहते हैं
प्रेम फंदा है, जाल है
नहीं ....
यह गहरा ताल है
जिसमें अश्कों के मोती मिलते हैं
इबादत के कँवल खिलते हैं।
6
प्रेम !
भूखे को भात है
दृष्टिहीन को .....
तारों भरी रात है।
छोकरा है ...छोकरी है
बेरोजगार को नौकरी है ।
शायर को गज़ल है ,
निर्धन को महल है
गहरे अँधेरे में सूर्य है, सविता है
और कवियों के लिए कविता है ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
छोकरा है ...छोकरी है
बेरोजगार को नौकरी है ।
शायर को गज़ल है ,
निर्धन को महल है
गहरे अँधेरे में सूर्य है, सविता है
और कवियों के लिए कविता है ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
ReplyDeleteप्रेम !
क्या है प्रेम ?
यह एक ....
दिव्य अनुभूति है ।
भावों की माला का
अनमोल मोती है ।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (14-02-2022 ) को 'ओढ़ लबादा हंस का, घूम रहे हैं बाज' (चर्चा अंक 4341) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:30 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
चर्चामंच पर स्थान देने के लिए हृदय से आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह यादव जी 🙏💐
Deleteवाह प्रेम की ऐसी-ऐसी परिभाषाएँ !
ReplyDeleteइसमें प्रेम की कुछ और परिभाषाएँ जोड़ी जा सकती थीं -
प्रेम इनकम टैक्स में मिली अतिरिक्त छूट है,
प्रेम बढ़ा हुआ महंगाई भत्ता है
प्रेम आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन है
प्रेम रिजेक्शन के बावजूद सेलेक्शन है
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteप्रेम को परिभाषित करता सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया मेरे लेखन की ऊर्जा है, आभार 🙏
Deleteप्रेम !
ReplyDeleteभूखे को भात है
दृष्टिहीन को .....
तारों भरी रात है।
छोकरा है ...छोकरी है
बेरोजगार को नौकरी है ।
शायर को गज़ल है ,
निर्धन को महल है
गहरे अँधेरे में सूर्य है, सविता है
और कवियों के लिए कविता है ।
प्रेम के अर्थ को बयां करती बहुत ही सुंदर सृजन😍💓
आपकी प्रतिक्रिया मेरे लेखन की ऊर्जा है, आभार 🙏
Deleteप्रेम !
ReplyDeleteभूखे को भात है
दृष्टिहीन को .....
तारों भरी रात है।
....सत्य के कितने करीब है ये पंक्तियां।।।।।
प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका 🙏
Deleteप्रेम की दिव्य अनुभूति शब्दों में पिरोने का सार्थक प्रयास।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
रचना के मर्म तक जाती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका 🙏
Deleteप्रेम ज़िंदगी है ,बन्दगी है
ReplyDeleteकिसी को अलकें, पलकें
कंगन, बिंदिया , पायल है
कोई डूबा है इसमें ...
तो कोई प्रेम में घायल है ।
प्रेम की सटीक परिभाषा
लाजवाब सृजन
वाह!!!
सुन्दर, प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका 🙏
Deleteबड़े अनूठे और अलग से रूप हैं प्रेम के !!! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteमेरी प्रस्तुति को आपका स्नेह मिला , हृदय से आभारी हूँ 🙏
Deleteलाजवाब कृति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मनोज जी 🙏
DeleteJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
ReplyDeletePub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers
Thank you very much 🙏
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,आदरणीया शुभकामनाएँ
ReplyDeleteHardik dhanyawad aapaka 🙏
Deleteवाह ... प्रेम की कितने ही रूप उजागर कर दिए आपने ...
ReplyDeleteDil se shukriya 🙏
Deleteबहुत सुंदर सृजन प्रिय सखी, बहुत आनन्द आया पढ़कर, ऐसे ही सृजन यात्रा चलती रहे🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteस्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार सुनीता जी 🌹🙏
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