डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
जल्दी ले जा डाकिए,ये राखी के तार |
गूँथ दिया
मैंने अभी,इन धागों में प्यार ||१
बड़ी सजीली
राखियाँ , बेचे नेट हज़ार |
रची रात भर जागकर ,है दिल से उपहार ||२
अक्षत आशा के
रखे ,रोली दुआ अपार |
नयनों से
टप-टप गिरे ,आँसू भी दो-चार ||३
समझाया मैंने
बहुत,सुने न मेरी बात |
भर-भर आए मन
मेरा,क्या भेजूँ सौग़ात ||४
हर राखी का
हो गया ,अब तो ये दस्तूर |
चाहूँ पर
क्या आ सकूँ ,हूँ कितनी मजबूर ||५
भाभी से
कहियो ज़रा ,करें कभी तो याद |
वरना उनके मायके ,भेजूँगी फ़रियाद ||६
माँ-बाबू जी
साथ में ,वो प्यारी सी डॉल |
मन चाहे
खेलूँ ज़रा ,संग भतीजे बॉल ||७
झूमर ,कंगन,टेकुली, नहीं किसी की चाह |
बस भैया
चिन्ता बहुत ,घर की है परवाह ||८
ख़ुशियों से
हो आपकी ,हरदम ही पहचान |
कभी-कभी करना
मगर ,मेरा भी कुछ ध्यान ||९
लक्ष्मी घर
छम-छम फिरे,खेलें गोद गणेश |
यही
प्रार्थना ईश से,हरें सभी दुख,क्लेश ||१०
वक़्त हुआ ,फिर आपसे,करूँ फ़ोन पर
बात |
ध्यान रखें
ख़ुद ,है पता ,दिन बीते कब रात ?११
छाया औ' फल-फूल दें ,सबके हित
देह-दान |
वृक्ष-वीर को
बाँधना ,राखी का सम्मान ||१२
सीमा पर डटकर
खड़े ,बनकर जो चट्टान |
बँधना उनके
हाथ पर ,राखी का अरमान ||१३
दिनकर से
दमकें दिवस ,सुखद चाँदनी रात|
भैया मिश्री
घोलकर ,लिख भेजी दो बात ||१४