सृजन की
चाह लिए ,संचित उड़ेलकर ,
जगती का
जैसे कि पर्जन्य ताप धोता है |
स्नेह से
दुलारे कभी ,दण्ड का विधान कर ,
कुम्भकार सम
नव रूप में संजोता है |
नन्हीं-नन्हीं
कलियों में सुविचार सींच कर ,
राष्ट्र के
निर्माण हेतु प्राण बीज बोता है ,
कृष्ण ,रामकृष्ण
,सार्थ ,दे विवेक और पार्थ ,
विज्ञ ,वन्दनीय
वह गुरु धन्य होता है ||
ऐसे सद्गुरु की कृपा सबको सदा प्राप्त हो ..बारम्बार नमन और हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ...
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार )