चित्र गूगल से साभार
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
लो सतरंगी हो गया , मन भी तन के साथ |
कैसे जादूगर पिया , रंग लियो नहि हाथ || ३
बौराई रुत फाग सी , मैं भूली सब रीत |
ज्यों-ज्यों सिमटी आप में ,त्यों-त्यों छलकी प्रीत ||४
गुँझिया से मीठे लगें ,गोरी तेरे बोल |
गारी पिचकारी हुई , रंग माधुरी घोल ||५
कहाँ सुहाए चंद्रिका , मन तो हुआ चकोर |
राधे सबसे पूछतीं , कित मेरा चित चोर || ६
कान्हा कैसी बावरी , मूढ़ मति भई आज |
नैना चाहें देख लें ,डरूँ न छलके राज ||७
कितना छुपकर आइये ,गोप-गोपिका संग |
राधे से छुपते नहीं , कान्हा तोरे रंग ||८
होली की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ......
ज्योत्स्ना शर्मा
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
होली में अब होम दें , कलुषित भाव विकार |
मन से मन सबके मिलें , हो फिर मुखरित प्यार ||१
कुछ भूलों को भूल कर , चलो मिला लें हाथ |
जीवन भर क्या कीजिए , नफ़रत लेकर साथ ||२
लो सतरंगी हो गया , मन भी तन के साथ |
कैसे जादूगर पिया , रंग लियो नहि हाथ || ३
बौराई रुत फाग सी , मैं भूली सब रीत |
ज्यों-ज्यों सिमटी आप में ,त्यों-त्यों छलकी प्रीत ||४
गुँझिया से मीठे लगें ,गोरी तेरे बोल |
गारी पिचकारी हुई , रंग माधुरी घोल ||५
कहाँ सुहाए चंद्रिका , मन तो हुआ चकोर |
राधे सबसे पूछतीं , कित मेरा चित चोर || ६
कान्हा कैसी बावरी , मूढ़ मति भई आज |
नैना चाहें देख लें ,डरूँ न छलके राज ||७
कितना छुपकर आइये ,गोप-गोपिका संग |
राधे से छुपते नहीं , कान्हा तोरे रंग ||८
होली की हार्दिक शुभ कामनाओं के साथ ......
ज्योत्स्ना शर्मा