है सुन्दर उपहार ज़िंदगी
सुख-दुख का भण्डार ज़िंदगी ।
तेरा- मेरा प्यार ज़िंदगी
मीठी- सी तकरार ज़िंदगी ।
खो बैठे धन अमर-प्रेम का
तब तो केवल हार ज़िंदगी ।
देती जो मुसकान , धरा का-
करती है शृंगार ज़िंदगी ।
काँटे-कलियाँ बीन-बीनकर
रचे सुगुम्फित हार ज़िंदगी।
इधर कुआँ है उधर है खाई
दोधारी तलवार ज़िंदगी ।
खूब मनाए मन का उत्सव
बन जाए त्योहार ज़िंदगी ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार)