Saturday, 12 February 2022

171- प्रेम

                                (चित्र गूगल से साभार)


1
प्रेम !
क्या है प्रेम ?
यह एक ....
दिव्य अनुभूति है ।
भावों की माला का
अनमोल मोती है ।
2
प्रेम बावरा !
महफिल में बेचैन , आहें भरता
छटपटाता है  ........
कभी तन्हाई में
खुद-ब-खुद मुस्कुराता है।
3
प्रेम ज़िंदगी है ,बन्दगी है
किसी को अलकें, पलकें
कंगन, बिंदिया , पायल है
कोई डूबा है इसमें ...
तो कोई प्रेम में घायल है ।
4
मिट जाता है कोई
तो कोई इसमें खोता है
यह मिलन ही नहीं
विरह में भी होता है।
सच में प्रेम ...अजर,अमर ,
अनंत रस का सोता है ।
5
वो कहते हैं
प्रेम फंदा  है, जाल है
नहीं ....
यह गहरा ताल है
जिसमें अश्कों के मोती मिलते हैं
इबादत के कँवल खिलते हैं।
6
प्रेम !
भूखे को भात है
दृष्टिहीन को .....
तारों भरी रात है।
छोकरा है ...छोकरी है
बेरोजगार को नौकरी है ।
शायर को गज़ल है ,
निर्धन को महल है
गहरे अँधेरे में सूर्य है, सविता है
और कवियों के लिए कविता है ।

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा