डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
जीवन की पाठशाला और समय जैसा शिक्षक ! यहाँ जैसे पाठ सीखने को मिलते हैं वैसे किसी पाठ्यक्रम की कोई सी पुस्तक में नहीं । हमें साथ लेकर पल-पल आगे बढ़ता यह समर्थ शिक्षक पथ में मिलते भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति वाले सहयात्रियों ,छोटी-बड़ी घटनाओं, खट्टे- मीठे अनुभवों के माध्यम से जीवन की उलझनों और उनके समाधान की ओर इंगित करता है । अब यह हम पर निर्भर है कि हम कितना समझते हैं इन इशारों को !
गया वर्ष भी कुछ ऐसे ही संकट और समाधान दे गया । विगत दिनों दो घटनाएँ घटीं , जो आपके साथ साझा करना जरूरी लगा । सुबह की नियमित सैर से लौटते हुए बड़ा रोचक दृश्य दिखाई दिया । बीच सड़क एक गाड़ी रुकी खड़ी थी । नशे में टुन्न चार युवा चारों तरफ से पूरे जोश के साथ धक्का देने में लगे थे , एक आगे से पीछे ,दूसरा पीछे से आगे , एक बाएँ से दाएँ और एक दाएँ से बाएँ ..अजब नज़ारा था , गाड़ी भी हैरान-परेशान होगी , जाऊँ तो किधर जाऊँ ? खूब भीड़ इकठ्ठा थी ,जैसे मज़मा लगा था । लोग मजे ले रहे थे कि किसी ने पूछा , “अरे भाई क्या हुआ” तो एक बोला , “जी मानव दी गड्डी नू जाने की होया” और लगा धक्का मारने । तभी किसी ने पुलिस को फोन कर दिया और फिर वही हुआ जो होना था । मैं भी लपककर आगे चल दी , देर जो हो गई थी ।
अभी एक-दो कदम ही चली थी कि सामने से वर्मा जी रुआँसे से चले आ रहे हैं । बोले , क्या बहन जी ! आपका शहर भी निरा चौपट नगरी ही है ।”
क्या हुआ पूछा तो बोले ,
“अरे , परसों हमारे बेटे के जन्मदिन का समारोह था , पता नहीं कहाँ से कुछ लोग आए और हमारे अम्मा-पिता जी को ढेरों गालियाँ सुना गए” ।
ओहो बड़ा पचड़ा हुआ , आपने तो खूब ठोक दिया होगा ?
नहीं, नहीं जी हम कहाँ कुछ कह पाए ,वर्मा जी बोले ।
क्यों , गालियाँ देकर भाग गए थे क्या वो लोग ?
नहीं जी , कितनी देर हाथ नचा-नचा कर सुनाते रहे ।
ओहो! आप अकेले थे क्या ? हमने फिर पूछा। अजी कहाँ ,सारे रिश्तेदारों के सामने बड़ी बेइज्जती हुई ।
वर्मा जी , बहुत सारे लोग थे क्या वो ? नहीं जी चार-पाँच थे । फिर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई ? पूछा तो बोले , “नहीं जी , किसके खिलाफ कराएँ , मुँह तो ढके थे उनके । बस राम ही राखे अब ऐसी चौपट व्यवस्था को , ..संविधान ने हमें भी कुछ अधिकार दिए हैं ; लेकिन क्या कहिए .. किसी काम के नहीं ये लोग ...
बड़बड़ाते हुए वर्मा जी तो निकल गए; लेकिन दोनों ही घटनाएँ मुझे बड़े सोच में डाल गईं । नए वर्ष में गणतंत्र-दिवस की शुभ बेला पर कुछ लिखने का मन था । कितनी सुन्दर कल्पनाएँ , स्वप्न तैयार थे; लेकिन आज के भ्रमण ने दो ही बातें शेष रहने दीं । पहली- पद, पैसा और ताकत के नशे में चूर ‘कुछ’ लोग आज सम्पूर्ण विश्व में परस्पर प्रेम , सौहार्द , मानवता के विकास की गाड़ी के आगे अड़े खड़े हैं । नए वर्ष में नए संकल्पों के साथ इस नशे से मुक्ति पाएँ और विकास की गाड़ी आगे बढाएँ । दूसरी – संविधान द्वारा अधिकारों के साथ दिए गए अपने कर्तव्यों पर भी गौर फरमाएँ और अपने गणतंत्र को मजबूत बनाएँ । इन्हीं शब्दों के साथ भारतीय गणतंत्र एवं समस्त भारतवासियों को इस पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ !!
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