Thursday, 25 January 2018

125-शुभ गणतन्त्र दिवस !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

जीवन की पाठशाला और समय जैसा शिक्षक ! यहाँ जैसे पाठ सीखने को मिलते हैं वैसे  किसी        पाठ्यक्रम की कोई सी पुस्तक में नहीं  हमें साथ लेकर पल-पल आगे बढ़ता यह समर्थ शिक्षक पथ में मिलते भिन्न-भिन्न प्रवृत्ति वाले सहयात्रियों ,छोटी-बड़ी घटनाओं, खट्टे- मीठे अनुभवों के माध्यम से जीवन की उलझनों और उनके समाधान की ओर इंगित करता है  अब यह हम पर निर्भर है कि हम कितना समझते हैं इन इशारों को !

गया वर्ष भी कुछ ऐसे ही संकट और समाधान दे गया  विगत दिनों दो घटनाएँ घटीं , जो आपके साथ साझा करना जरूरी लगा  सुबह की नियमित सैर से लौटते हुए बड़ा रोचक दृश्य दिखाई दिया  बीच सड़क एक गाड़ी रुकी खड़ी थी  नशे में टुन्न चार युवा चारों तरफ से पूरे जोश के साथ धक्का देने में लगे थे , एक आगे से पीछे ,दूसरा पीछे से आगे , एक बाएँ से दाएँ और एक दाएँ से बाएँ ..अजब नज़ारा था , गाड़ी भी हैरान-परेशान होगी , जाऊँ तो किधर जाऊँ ? खूब भीड़ इकठ्ठा थी ,जैसे मज़मा लगा था  लोग मजे ले रहे थे कि किसी ने पूछा , “अरे भाई क्या हुआ” तो एक बोला , “जी मानव  दी गड्डी नू जाने की होया” और लगा धक्का मारने  तभी किसी ने पुलिस को फोन कर दिया और फिर वही हुआ जो होना था  मैं भी लपककर आगे चल दी , देर जो हो गई थी 

अभी एक-दो कदम ही चली थी कि सामने से वर्मा जी रुआँसे से चले  रहे हैं  बोले , क्या बहन जी ! आपका शहर भी निरा चौपट नगरी ही है ।”
क्या हुआ पूछा तो बोले , “अरे , परसों हमारे बेटे के जन्मदिन का समारोह था ,  पता नहीं कहाँ से कुछ लोग आए और हमारे अम्मा-पिता जी को ढेरों गालियाँ सुना गए” 
ओहो बड़ा पचड़ा हुआ , आपने तो खूब ठोक दिया होगा ?
नहींनहीं जी हम कहाँ कुछ कह पाए ,वर्मा जी बोले 
क्यों , गालियाँ देकर भाग गए थे क्या वो लोग ?
नहीं जी , कितनी देर हाथ नचा-नचा कर सुनाते रहे 
ओहो! आप अकेले थे क्या ? हमने फिर पूछा। अजी कहाँ ,सारे रिश्तेदारों के सामने बड़ी बेइज्जती हुई 
वर्मा जी , बहुत सारे लोग थे क्या वो ? नहीं जी चार-पाँच थे  फिर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई ? पूछा तो बोले , “नहीं जी , किसके खिलाफ कराएँ , मुँह तो ढके थे उनके  बस राम ही राखे अब ऐसी चौपट व्यवस्था को , ..संविधान ने हमें भी कुछ अधिकार दिए हैं ; लेकिन क्या कहिए .. किसी काम के नहीं ये लोग ...
बड़बड़ाते हुए वर्मा जी तो निकल गए;  लेकिन दोनों ही घटनाएँ मुझे बड़े सोच में डाल गईं  नए वर्ष में गणतंत्र-दिवस की शुभ बेला पर कुछ लिखने का मन था  कितनी सुन्दर कल्पनाएँ , स्वप्न तैयार थेलेकिन आज के भ्रमण ने दो ही बातें शेष रहने दीं  पहली- पदपैसा और ताकत के नशे में चूर ‘कुछ’ लोग आज सम्पूर्ण विश्व में परस्पर प्रेम , सौहार्द , मानवता के विकास की गाड़ी के आगे अड़े खड़े हैं  नए वर्ष में नए संकल्पों के साथ इस नशे से मुक्ति पाएँ और विकास की गाड़ी आगे बढाएँ  दूसरी  संविधान द्वारा अधिकारों के साथ दिए गए अपने कर्तव्यों पर भी गौर फरमाएँ और अपने गणतंत्र को मजबूत बनाएँ  इन्हीं शब्दों के साथ भारतीय गणतंत्र एवं समस्त भारतवासियों को इस पावन अवसर पर हार्दिक   शुभकामनाएँ !!


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Monday, 22 January 2018

124-ज्यों आए हों कन्त !


    
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 



चन्दन वन सा मन हुआ ,महके है दिन रैन,
तृष्णा की विष वल्लरी कब लेने दें चैन |
कब लेने दें चैन लगे फल आह व्यथा के ,
शेष नहीं हैं  बैन  ,सुवासित सरस कथा के |
मातु करो उपकार प्रभासित कर कंचन सा ,
हो अति मधुर उदार ,चारु चित चन्दन वन सा ||1

कलियाँ ख़ुशियों की खिलीं ,ज्यों आए हों कन्त,
धरा मगन,द्वारे खड़े ,हैं ऋतुराज वसन्त |
हैं ऋतुराज वसन्त ,पीत परिधान सुहावन,
सुरभित मंद झकोर  ,मधुर गुंजन मनभावन |
बौराई रुत ,आम्रझूम उठते घर-गलियाँ ,
मिटे सकल संतापन कैसे खिलतीं कलियाँ ||2

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Tuesday, 9 January 2018

123 - सुनो तो ज़रा !

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा  

सुनो तो ज़रा 
दिल ही तो सुनता 
दिल का कहा ।

हैं अनमोल 
ज़ख़्मों को भर देते 
दो मीठे बोल ।

उधड़ी मिली
रिश्तों की तुरपन
गई न सिली । 

फाँस थी चुभी 
मुट्ठी में अंगुलियाँ 
बँधी न कभी । 

अरी तन्हाई !
शुक्रिया संग मेरे 
तू चली आई ।      



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