Saturday, 24 October 2020

148-शुभ दशहरा




मन-मन्दिर ,माँ चंडिके ! सदा विराजो आप 

हे महिषासुर मर्दिनी ! मिटें सकल सन्ताप ......

जिनकी है लीला अजब , महिमा अपरम्पार 

मन में उजियारा करें, करते भव से पार .......

ज्योत्स्ना शर्मा 

Saturday, 3 October 2020

147- सजा अल्पना

 


बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !

रीति कौन बताए मुझको,
संध्या गीत सुनाए मुझको
कौन पर्व है कौन तिथि पर
इतना याद दिलाए मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाईवे से जोड़ दिया .......

दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली थी कुछ बेरंगी सी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया ......

राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन, राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
अंतर्जाल ने तोड़ दिया.........

बड़ी उदासी
थी कल मन में
क्यों हमने घर छोड़ दिया !

Jyotsna Sharma