मन में शोर
भागी है उठकर
नैनों से नींद ।1
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पक्की दीवार
कीलों की फितरत
जाती है हार !2
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ऊषा मगन
ले मोतियों के हार
करे शृंगार !3
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थामो कमान
तरकश से तीर
स्वयं न चलें ।4
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काव्य-कुसुम
प्रेम की सुगंध में
भीगे-से शब्द !5
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रहे अछूता
विकट विकारों से
भाव-भवन ।6
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उड़ी पतंग
नाच रही नभ में
डोर बँधी है ।7
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फिक्र में जागे
नयनों में सपने
नहीं सजते ।8
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दिया उसने
बाहों में भरकर
सारा आकाश ।9
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डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा