Friday, 9 April 2021

159- सारा आकाश !

 












मन में शोर
भागी है उठकर
नैनों से नींद ।1

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पक्की दीवार
कीलों की फितरत
जाती है हार !2

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ऊषा मगन
ले मोतियों के हार
करे शृंगार !3

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थामो कमान
तरकश से तीर
स्वयं न चलें ।4

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काव्य-कुसुम
प्रेम की सुगंध में
भीगे-से शब्द !5

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रहे अछूता
विकट विकारों से
भाव-भवन ।6

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उड़ी पतंग
नाच रही नभ में
डोर बँधी है ।7

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फिक्र में जागे
नयनों में सपने
नहीं सजते ।8

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दिया उसने
बाहों में भरकर
सारा आकाश ।9

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डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

Tuesday, 6 April 2021

158-किरणों की आहट

 


क्षणिकाएँ : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

1
हैरान जंगल !
सालों-साल तो
बाज और भेड़ियों ने
अपना कानून चलाया
गिद्धों ने नोच-नोच खाया
इलज़ाम मोरों पर आया । 


2
अपमार्जक !
उदास हैं गिद्ध
कुछ कह नहीं पाते हैं !
कह सकते तो कहते-
ये मनुष्य
इलज़ाम हम पर क्यों
लगाते हैं
हमने कहाँ मारा
ज़िंदा प्राणियों को, 
हम तो मुर्दों को खाते हैं ! 


3
गरीबी, भूख,
फाक़ाकशी पर
क़ौम के आका
व्यवस्था से
इस क़दर गुस्सा खा गए
कि, बच्चों के हाथों में
बन्दूकें थमा गए ।


4
लो हो गया इन्साफ !
निर्दोष बरी भँवरा ,
उसका कोई दोष
नहीं पाया गया ।
धूर्त कलियों द्वारा
अपनी महक से
खुद ही लुभाया गया ,
पास बुलाया गया ।


5
कितनी अच्छी है वो !
मैं उससे .....
देर तक बतियाती रही
....और प्यारी तन्हाई
मेरी हाँ मे हाँ मिलाती रही ।


6
सुखद होता है
मित्रों से मिलना !
इसका
प्रमाण मिल गया
जब
किरणों की आहट से
फूलों का
चेहरा खिल गया....... 😊
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
( चित्र गूगल से साभार)