Saturday, 18 November 2017

121-आधुनिक भारत के शिल्पी : सरदार वल्लभ भाई पटेल


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

अदालत में अपने मुकदमे की पैरवी करते वकील साहब के हाथ में किसी ने एक पत्र पकड़ा दिया । उन्होंने एक नज़र पढ़ा और जेब में रख लिया । लगभग दो घंटे बहस चली और वे मुकदमा जीत गए । बाद में न्यायालय में उपस्थित न्यायाधीश महोदय एवं अन्य अधिवक्ताओं को पता चला कि वकील साहब की पत्नी के देहाँत का समाचार था । व्यथित वकील साहब से इस विषय में पूछने पर उन्होंने कहा , “उस समय मैं अपना फ़र्ज़ निभा रहा था ,जिसका शुल्क मेरे मुवक्किल ने न्याय के लिए मुझे दिया था ,मैं उसके साथ अन्याय कैसे कर सकता था ।” यह कर्त्तव्यनिष्ठ, दृढ़चरित्र, न्यायप्रिय अधिवक्ता और कोई नहीं हमारे आज़ाद भारत के प्रथम उप प्रधानमंत्री, गृह, सूचना तथा रियासत विभाग के मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल थे ।

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म दिनाँक 31 अक्टूबर, 1875 को गुजरात के नडियाद के एक कृषक परिवार में हुआ था । पिता झावेरभाई पटेल और माता लाडबाई पटेल की वह चौथी संतान थे । उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कारसमद में हुई । सन 1897 में मैट्रिक और 1900 में जिला अधिवक्ता की परीक्षा उतीर्ण की । गंभीर , शालीन और धुन के धनी सरदार पटेल ने अपनी शिक्षा–दीक्षा कठिन संघर्ष के साथ पूरी की । सन 1905 में बैरिस्टर कोर्स करने के लिए इकट्ठे किए पैसों से अपने बड़े भाई बिट्ठल भाई को इंग्लैण्ड पढ़ने भेज दिया । बाद में सन 1910 में स्वयं भी इंग्लॅण्ड जाकर ‘मिडिल टेम्पल’ में लॉ की पढाई के लिए प्रवेश ले लिया । वहाँ  आधी समयावधि में प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण करके  50 पौंड का ईनाम पाया । जनवरी 1913 में बैरिस्टर बने और फरवरी 1913 में भारत लौटकर वकालत प्रारम्भ कर दी । थोड़े समय में ही निपुण अधिवक्ता के रूप में विख्यात हो गए । इनकी पत्नी का नाम झावेरबाई ,पुत्री मणिबेन और पुत्र का नाम डाहिया भाई पटेल था ।

महात्मा गाँधी के विचारों से प्रभावित पटेल आज़ादी के आन्दोलन में कूद पड़े । सन 1920 में ‘असहयोग आन्दोलन’ में विदेशी कपड़ों की होली जलाई । फसलों की बर्बादी से बदहाल खेड़ा जनपद के किसानों की कर में छूट की माँग को अंग्रेजों ने अस्वीकार कर दिया था । सरदार पटेल ने गाँधी जी एवं अन्य नेताओं के साथ किसानों का नेतृत्व कर अंग्रेजी सरकार को कर में छूट देने के लिए बाध्य कर दिया । सन 1928 में बारडोली के सशक्त, सफल सत्याग्रह के बाद उन्हें वहाँ  की जनता के द्वारा “बारडोली का सरदार” की उपाधि प्रदान की गई ,जिसे बाद में सारे देश ने ‘ सरदार’ के रूप में स्वीकार किया । उसके बाद से आज़ादी के आन्दोलन में सक्रिय पटेल अनेक बार जेल गए । सन 1930 में ‘नमक सत्याग्रह’ में पटेल को 3 माह की कैद हुई । सन 1932 में ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ में पुनः गिरफ्तार होकर गाँधी जी के साथ यरवदा जेल में रहे ,जहाँ से जुलाई 1934 में रिहा हुए । अक्टूबर 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ्तार हुए और अगस्त 1941 में रिहा हुए । ‘भारत छोडो’ आन्दोलन में अगस्त 1942 से सन 1945 तक पटेल जेल में रहे ।

त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति पटेल ने आज़ादी की लड़ाई में तन्मयता से भाग लेकर भी प्रधानमंत्री पद की दौड़ से स्वयं को दूर रखा । आजाद भारत में अपने दायित्वों का सफलता पूर्वक निर्वहन किया । गृहमंत्री के रूप में सरदार पटेल की प्राथमिकता भारत की बिखरी हुई रियासतों के एकीकरण के साथ सुदृढ़ , सशक्त भारत के निर्माण की थी । जिसके लिए उन्होंने दूरदर्शिता पूर्वक आजादी से ठीक पूर्व ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर प्रयास प्रारंभ कर दिये थे । जिनके परिणाम स्वरुप हैदराबाद , जूनागढ़ और कश्मीर रियासतों को छोड़कर प्रायः सभी रियासतों ने भारत में स्वेच्छा से विलय स्वीकार किया । विरोध से डरकर जूनागढ़ का नवाब पाकिस्तान भाग गया और हैदराबाद रियासत के लिए ‘आपरेशन पोलो’ के अंतर्गत सेना भेजकर निजाम का आत्मसमर्पण कराया ।

सामाजिक क्षेत्र के अन्य कार्यों में पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण , गाँधीस्मारक निधि की स्थापना , कमला नेहरू अस्पताल की रूपरेखा आदि कार्य भी विशेष रूचि के साथ किए । गाँधी जी के साथ मिलकर गुजरात विद्यापीठ स्थापित करने का निर्णय लिया । जिसके लिए बाद में रंगून से 10 लाख रुपये भी एकत्र किए ।
गोआ पर उनके दृष्टिकोण का पता इस प्रसंग से चलता है – भारतीय युद्धपोत से यात्रा करते हुए पटेल गोआ के निकट पहुँचे । वांछित सैन्य -शक्ति का जायजा लेकर पटेल ने अफसरों को गोवा पर अधिकार करने का आदेश दे दिया । अफसरों द्वारा लिखित आदेश दिए जाने की विनती करने पर संवैधानिक दृष्टि से विचार करते हुए उस समय लौट आए । इसी प्रकार लक्षद्वीप समूह पर दूरदर्शिता से काम लेते हुए भारतीय नौसेना के एक जहाज को तुरंत वहाँ भारतीय ध्वज फहराने भेज दिया । उसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के निकट देखे गए , जो भारतीय ध्वज देखकर वापस लौट गए ।

सरदार पटेल को लगभग 56रियासतों के भारत में एकीकरण के अविस्मरणीय योगदान तथा अन्य कड़े निर्णयों के लिए ‘लौह पुरुष’ और ‘भारत का बिस्मार्क’ जैसी उपाधियों से विभूषित किया गया । उनके जीवन काल में ही उन्हें नागपुर, बनारस तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालयों द्वारा क्रमशः 3, 25 एवं 27 नवम्बर ,1948 को ‘डॉ. ऑफ़ लॉ’ की उपाधि से सम्मानित किया गया । 26 फरवरी 1948 को उस्मानिया वि.वि. ने भी ‘डॉ. ऑफ़. लॉ’ की उपाधि प्रदान की तथा मरणोपरांत वर्ष 1991 में सर्वोच्च राष्ट्रीय पुरस्कार ‘ भारत रत्न ‘ से अलंकृत किया ।  सरदार पटेल दूरदर्शी  राजनेता थे।उन्होंने 1950 में नेहरू जी को पत्र लिखकर चीन की तिब्बत नीति के कपट  के बारे में  सजग किया था , जिस पर उस समय ध्यान नहीं दिया गया।

यद्यपि भारत माता के इस कुशल कूटनीतिज्ञ, दूरदर्शी , तेजस्वी , दृढ़ चरित्र सपूत का मुम्बई ( तत्कालीन बम्बई ) में 15 दिसम्बर , 1950 को हृदयाघात से निधन हो गया तथापि आधुनिक भारत के शिल्पी के रूप में वे हमारे हृदयों में सदैव अमर रहेंगे । 
- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा