डॉ•ज्योत्स्ना शर्मा
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
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क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
रीति कौन बताये मुझको
संध्या गीत सुनाये मुझको
कौन पर्व है ,कौन तिथि पर
इतना याद दिलाये मुझको
गाँव की छोटी पगडंडी को
हाई वे से जोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
दीवाली पर शोर बहुत था
दीप उजाला कम करते थे
होली भी कुछ बेरंगी थी
मिलने से भी हम डरते थे
सजा अल्पना कुछ रंगों से
बिटिया ने फिर जोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
राजमहल हैं लकदक झूले
तीज के मेले हम कब भूले
सावन राखी मन ही भीगा
भीड़ बहुत पर रहे अकेले
कैसे जाल निराशा का फिर
'अन्तर्जाल 'ने तोड़ दिया
बडी़ उदासी थी कल मन में
क्यूँ हमने घर छोड़ दिया ।
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