( चित्र गूगल से साभार)
'गर्मी के दोहे' आपकी सेवा में -
गाँव, शहर , खलिहान में , चँहु दिशि घूमे घाम ।
अलसाई दोपहर को , रुचे न कोई काम ।।1
रुत गरमी की आ गई, लिए अगन-सा रूप ।
भोर हुए भटकी फिरे, चटख सुनहरी धूप।।2
सूरज के तेवर कड़े, बरसाता है आग ।
पर मुस्काए गुलमोहर , पहन केसरी पाग ।।3
खूब रसीली लीचियाँ, बर्फ मलाईदार ।
खरबूजा , तरबूज हैं , गरमी के उपहार ।।4
लगें बताशा अम्बियाँ, बड़ी जायकेदार ।
भरी बाल्टियाँ ला धरीं , दादा जी ने द्वार ।।5
हरा पुदीना , मिर्च की , चटनी के क्या दाम ।
पना बना अनमोल है , खट्टे-मीठे आम ।।6
अम्मा ! घर में भर गई , महक मसालेदार ।
मुँह में पानी ला रहा , बरनी भरा अचार ।।7
बड़ी बेरहम ये गरम , हवा उड़ाती धूल
मुरझाया यूँ ही झरा, विरही मन का फूल ।।8
तपता अम्बर , हो गई , धरती भी बेहाल ।
सूनी पगडंडी ,डगर , किसे सुनाएँ हाल ।।9
लथपथ देह किसान की , बहा स्वेद भरपूर ।
चटकी छाती खेत की , बादल कोसों दूर ।।10
दिनकर निकला काम पर , करे न कोई बात ।
कितने मुश्किल से कटी , यह गरमी की रात ।।11
उमड़-उमड़ कर जो कभी, खूब सींचती प्यार ।
सूख-सूख नाला हुई , वह नदिया की धार ।।12
ए.सी. , पंखा, फ्रिज थके , करते हैं फरियाद ।
घड़ा , सुराही , बीजणा, करो इन्हें भी याद ।।13
टी.वी.चैनल पर छिड़ी, बहस , बरसती आग।
कैसे हों ठंडे भला, भड़के गर्म दिमाग ।।14
सकल विश्व को ध्वंस के , मुख में रहे धकेल ।
विधि के नियत विधान में , मनुज करो मत खेल ।।15
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
( प्रकाशित- 'शब्द सृष्टि' मई, 2022)