(चित्र गूगल से साभार)
प्रबुद्ध नारी
समझे है जग को
न कहो 'ना री' !1
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खुलीआँखों से
देखतीं हैं सपने
सच भी करें ।2
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रचा संसार
जन्मे हैं तुमने ही
राम, कृष्ण भी ।3
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जगदंबे तू
करुणा बरसाती
चण्डी भी तू ही।4
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नव कलिका
जीवन की सुगंध
रंग है नारी ।5
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सुघड़ नारी
खुशियों की कुन्जी है
अमोल रत्न ।6
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समेटे चली
छिन्न-भिन्न सपने
आशा के मोती।7
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पंख कटे थे
छूती आज अम्बर
भरे उड़ान।8
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जीवन दात्री
पोरती है संस्कार
दूध के संग ।9
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जीवन धात्री
प्रथम शिक्षिका है
सँवारे मन ।10
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सच्ची संगिनी
खुशियों के रंग से
भरे जीवन ।11
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कहते माया
दुनिया में उसका
जादू है छाया ।12
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न मानी हार
घुट-घुटके जीना
नहीं स्वीकार ।13
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अद्भुत कृति
पूजित, विमर्दित
दूर्वा जैसी तू ।14
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तेरी कथायें
अनगिन व्यथाएँ
सदानीरा तू ।15
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भगिनी, सुता
विविध रूप धरे
धन्य ही करे ।16
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कोहरा घना
खोलती है खिड़की
एक किरण ।17
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गहन तम
चन्द्रिका ही आकर
बाँटे उजाला।18
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जीवन यात्रा
बनती संजीवनी
चिर संगिनी ।19
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स्वयं ईश्वरी
साकार ममता है
माँ रूप तेरा !20
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
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ReplyDeleteअद्भुत कृति
पूजित, विमर्दित
दूर्वा जैसी तू ।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (27-04-2022) को चर्चा मंच "अब गर्मी पर चढ़ी जवानी" (चर्चा अंक 4413) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' --
इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आदरणीय 🙏
Deleteकहते माया
ReplyDeleteदुनिया में उसका
जादू है छाया
वाह ! एक से बढ़कर एक हाइकु !
हृदय से आभार आपका 🙏
Deleteवाह! बहुत बढ़िया 👌
ReplyDeleteसादर
बहुत - बहुत धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया आपका 🙏
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteसुन्दर लेखनी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद मनोज जी 💐🙏
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