Friday, 26 August 2022

179-सुनो ज़िंदगी !


 क्यूँ सोचते हो

जो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी ।

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सुनो ज़िन्दगी !
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया , लुटाती चली ।

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ओ रे सावन !
प्यारा मीत सबका
कली का ,चमन का
श्यामल मेघ
संग में लाया कर
यूँ न भुलाया कर ।

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डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
(चित्र गूगल से साभार)

17 comments:

  1. सभी क्षणिकाएँ बहुत खूबसूरत । पहली वाली बेमिसाल ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका 🙏

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. हृदय से आभार आपका अनीता जी 🙏

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  4. सुंदर प्रस्तुति

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका 🙏

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 31 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
    >>>>>>><<<<<<<

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  6. बहुत बढ़िया। बहुत सुंदर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका 🙏

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  7. जीवन के लिए सकारात्मक भाव संजोए अत्यंत सुंदर सृजन ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका 🙏

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  8. क्यूँ सोचते हो
    जो तुम दर्द दोगे
    तो बिखर जाऊँगी
    ये जान लो
    धुल के आँसुओं से
    मैं निखर जाऊँगी ।

    वाह! बहुत खूब... बेहतरीन क्षणिकाएं ज्योति जी,सादर नमस्कार 🙏

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    1. हृदय से आभार कामिनी जी, स्नेह रहे 🙏🌷

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