क्यूँ सोचते हो जो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी ।
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सुनो ज़िन्दगी !
तुम एक कविता
मैं बस गाती चली
रस -घट भी
प्रेम या पीडा़ -भरा
पाया , लुटाती चली ।
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ओ रे सावन !
प्यारा मीत सबका
कली का ,चमन का
श्यामल मेघ
संग में लाया कर
यूँ न भुलाया कर ।
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डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार)
जय श्री कृष्ण 🙏
ReplyDeleteसभी क्षणिकाएँ बहुत खूबसूरत । पहली वाली बेमिसाल ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका 💐🙏
Deleteवाह! सुंदर!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका 🙏
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हृदय से आभार आपका अनीता जी 🙏
Deleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका 🙏
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 31 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
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हार्दिक धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत बढ़िया। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका 🙏
Deleteजीवन के लिए सकारात्मक भाव संजोए अत्यंत सुंदर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका 🙏
Deleteक्यूँ सोचते हो
ReplyDeleteजो तुम दर्द दोगे
तो बिखर जाऊँगी
ये जान लो
धुल के आँसुओं से
मैं निखर जाऊँगी ।
वाह! बहुत खूब... बेहतरीन क्षणिकाएं ज्योति जी,सादर नमस्कार 🙏
हृदय से आभार कामिनी जी, स्नेह रहे 🙏🌷
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