यूँ तो हरेक साल ही आता है दिसम्बर
लेकिन नए
सबक़ भी सिखाता है दिसम्बर ।
चम्पई सी
धूप तो कोहरे की शॉल में
अपने बदन
को कैसे छिपाता है दिसम्बर ।
गौरव कथा
सुनाती है 'सोलह' जो साथियों
तो दर्द
में किसी के रुलाता है दिसम्बर ।
रिश्तों की
ओढ़नी पे बिछी बर्फ़ ही मिली
विरहन को
मगर आग लगाता है दिसम्बर ।
गर्माहटों
से प्रेम की भर जाए जनवरी(ज़िंदगी)
देके दुआ
दिल से ये, जाता है दिसम्बर ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ......
डॉ. ज्योत्स्ना
शर्मा
(चित्र
गूगल से साभार)