Monday, 28 December 2015

पैगामे दिसम्बर !




यूँ तो हरेक साल ही आता है दिसम्बर 
लेकिन नए सबक़ भी सिखाता है दिसम्बर ।

चम्पई सी धूप तो कोहरे की शॉल में
अपने बदन को कैसे छिपाता है दिसम्बर ।

गौरव कथा सुनाती है 'सोलह' जो साथियों 
तो दर्द में किसी के रुलाता है दिसम्बर ।

रिश्तों की ओढ़नी पे बिछी बर्फ़ ही मिली
विरहन को मगर आग लगाता है दिसम्बर ।

गर्माहटों से प्रेम की भर जाए जनवरी(ज़िंदगी)
देके दुआ दिल से ये,  जाता है दिसम्बर ।


नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ ......

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

(चित्र गूगल से साभार)