क्या पूछो हो ' याद हमारी आती है ' ?
आएगी क्या , दिल से कब ये जाती है
रौशन है लेकिन धुँधला सा दिखता है
इक बदली जब सूरज पर छा जाती है
मर्यादा में बहे तो नदिया अच्छी है
तोड़े जो तटबंध ,प्रलय फिर ढाती है
ख्वाहिश का संसार अगर छोटा रख लो
सच मानों फिर दुनिया बहुत सुहाती है
चलते-चलते गिर जाओ तो उठ जाओ
अक्सर ठोकर रस्ता सही दिखाती है
तनिक सफलता पर खुश होना ठीक नहीं
बनते-बनते बात बिगड़ भी जाती है
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
(चित्र गूगल से साभार)
आपने सत्य को बहुत सहजता से पंक्तियों में ढाला है ..आपको बहुत बहुत बधाई..👏👏
ReplyDeleteहृदय से आभार भावना जी 🙏💐
ReplyDeleteअक्सर ठोकर रस्ता सही दिखाती है
ReplyDeleteसटीक
सादर
बहुत-बहुत आभार आपका 🙏💐
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना १ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
इस स्नेह सम्मान के लिए हृदय से आभारी हूँ 🙏💐
ReplyDeleteबहुत अच्छी ग़ज़ल है यह। एक-एक शेर क़ाबिल-ए-दाद है।
ReplyDeleteप्रेरक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ 🙏💐
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ज्योत्सना जी। सुन्दर पंक्तियों और मनोरम शैली से सजी रचना बहुत प्यारी है। सभी शेर मन को छूते हैं। शुरू की दो पंक्तियाँ विशेष लगी। सरल और सहज अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको।
ReplyDeleteक्यापूछो हो ' याद हमारी आती है ' ?
ReplyDeleteआएगी क्या , दिल से कब ये जाती है
मर्यादा में बहे तो नदिया अच्छी है
तोड़े जो तटबंध ,प्रलय फिर ढाती है👌👌👌🙏🙏🌷🌷🌷🌷
आभार रेणु जी। आपकी सरस प्रतिक्रिया मन को असीम आनन्द दे गई और नव लेखन की ऊर्जा भी,हृदयतल से धन्यवाद 🙏💐
ReplyDeleteतनिक सफलता पर खुश होना ठीक नहीं
ReplyDeleteबनते-बनते बात बिगड़ भी जाती है---गहन लेखन। खूब बधाई
प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका 💐🙏
Deleteरौशन है लेकिन धुँधला सा दिखता है
ReplyDeleteइक बदली जब सूरज पर छा जाती है
वाह अति सुंदर बधाई जी
वाह वाह सखी , खूब पकड़ा।
ReplyDeleteस्नेहपगी प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रिया जी 💐🙏