Friday, 5 August 2022

176- दो लोरियांँ


 लोरी - 1
मेरे राजदुलारे सो जाओ कल सूरज के संग उठ जाना
मेरी राजदुलारी सो जाओ कल किरणों के संग मुस्काना


तुम बनकर गीत सरस , सुन्दर
बस वचन मधुर कहते रहना
सबके मन में बन प्रीत अमर
रसधारा से बहते रहना
कलियाँ खिल जाएँ उमंगों  की
खुशियाँ ही खुशियाँ बरसाना । मेरे ....

तुम कृष्ण मेरे तुम राम मेरे
तुम राधा , मीरा , सीता हो
तुम भगत सिंह ,आज़ाद मेरे
तुम लछमी और सुनीता हो
राकेश, कल्पना के जैसे
अम्बर पर झन्डा फहराना । मेरे .....

लोरी -2 

आओ री निन्दिया रानी अंखियन में आओ
बिटिया को मेरी आकर सुलाओ
बिटवा को मेरे आकर सुलाओ

आओ तो संग ध्रुव, प्रह्लाद को लाओ
आओ तो गार्गी , अपाला को लाओ
ज्ञान का भक्ति का दीपक जलाओ ....

आओ कबीर सूर तुलसी को लाओ
आओ रसखान और मीरा को लाओ
सुन्दर कविता से मन को सजाओ....

आओ तो राणा प्रताप को लाओ
आओ तो पृथ्वी , छत्रसाल को लाओ
दुश्मन की छाती पे चढ़ना सिखाओ

आओ तो रानी लछमी को लाओ
आओ तो भगत सिंह ,आज़ाद को लाओ
माटी की खातिर मिटना सिखाओ

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 
(चित्र गूगल से साभार)







6 comments:

  1. आपने मनभावन लोरियों का सृजन किया है। प्रथम लोरी तो अति-प्रशंसनीय है।

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    1. प्रेरक उपस्थिति के लिए हृदय से आभारी हूँ 🙏

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 07 अगस्त 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हृदय से आभारी हूँ यशोदा जी, विलम्ब से उत्तर देने के लिए क्षमा 🙏

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  3. सखी श्वेता कह रही थी लोरियों के लिंक नहीं हैं
    उन्हें बताती हूँ

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