डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
1
सोने -सी निखर गई
नाम लिया तेरा
सिमटी ,फिर बिखर गई ।
2
है दिल की लाचारी
मत खोलो साथी
यादों की अलमारी ।
3
वो लाख दुहाई दें
बस में ना उनको
अब याद रिहाई दें ।
4
अँखियाँ कितनी तरसीं !
यादों की बदली
फिर उमड़ -उमड़ बरसी ।
5
बादल तो काले थे
यादों के तेरी
बस साथ उजाले थे ।
6
हौले से हाय छुआ !
तेरी याद किरण
मन मेरा कमल हुआ ।
7
जग दरिया लाख कहे
जान गई मैं तो
परबत की पीर बहे ।
8
पीले -से पात झरे
अनचाहे ,दिल के
होते हैं जख्म हरे ।
-0-
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (सोमवार, १० जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - दूरदर्शी पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteविविध विषयों पर सुन्दर लिकं संयोजित किये हैं आपने ...उनमें 'परबत की पीर बहे' को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसुन्दर संयोजन में "परबत की पीर बहे " को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार अरुन शर्मा जी
Deleteज्योत्स्ना शर्मा
बहुत सुंदर क्षणिकाएं.
ReplyDeleteमेरे माहिया (एक पंजाबी छंद ) आपको पसंद आये ..बहुत बहुत आभार ..Neeraj Kumar जी
Deleteज्योत्स्ना शर्मा
उम्दा अभिव्यक्ति...आपकी यह रचना मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteमैं ह्रदय से आभारी हूँ ..राजेन्द्र कुमार जी
Deleteज्योत्स्ना शर्मा
जग दरिया लाख कहे
ReplyDeleteजान गई मैं तो
परबत की पीर बहे ।
पीले -से पात झरे
अनचाहे ,दिल के
होते हैं जख्म हरे ।
बहुत सुन्दर.बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .
ह्रदय से आभार ..Madan Mohan Saxena जी
Deleteबहुत सुंदर अहसास..बधाई
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद् ..रश्मि शर्मा जी
Deleteआपके सभी माहिया हृदय को बहुत गहरे तक छू गए। इन हाइकु की मार्मिकता इनको उच्चकोटि के साहित्य में स्थापित करती है ।
ReplyDeleteसोने -सी निखर गई
नाम लिया तेरा
सिमटी ,फिर बिखर गई ।
-नाम लेकर 'सिमटना' और फिर 'बिखरना'की अभिव्यक्ति नूतनता लिये हुए है।
3
वो लाख दुहाई दें
बस में ना उनको
अब याद रिहाई दें ।
-यादों को रिहाई देना तो सचमुच किसी न्यायधीश के वश में नहीं।
4
अँखियाँ कितनीं तरसीं
यादों की बदली
फिर उमड़ -उमड़ बरसी ।
-यादों की बदली का उमड़ना और बरस'ना-प्रेम एवं विरह की उदात्त अनुभूति को सहजता से प्रस्तुत किया गया है।
5
बादल तो काले थे
यादों के तेरी
बस साथ उजाले थे ।
6
हौले से हाय छुआ
तेरी याद- किरण
मन मेरा कमल हुआ ।
-'याद- किरण' द्वारा छूना और मन का कमल होना-मोती की तरह भाव को पिरो दिया है ।
अन्य सभी माहिया भी बेजोड़ हैं ।परिमित बधाई ज्योत्स्ना जी ऽअपका यह ऐतिहासिक कार्य आने वाले दिनों में ज़रूर पहचान बनाएगा ।
सहज साहित्य से.. आ भाई काम्बोज जी, मेरे भावों से समरस आपकी समीक्षात्मक टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है ....सदा आपके मार्गदर्शन एवं स्नेह भाव की अपेक्षा रहेगी .. ..
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
khubsurat kshanikayen...
ReplyDeletebahut bahut aabhaar ..Mukesh Kumar Sinha ji
Deletesaadar
jyotsna sharma
आपकी हर रचना की तरह यह रचना भी बेमिसाल है !....सुंदर क्षणिकाएं.
ReplyDeleteअच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर....आपकी रचनाएं पढकर और आपकी भवनाओं से जुडकर....
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com