Thursday, 5 December 2013

एक प्रयास .....

                                      चित्र गूगल से साभार
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 


अभी हसरतें निकली भी न थीं घर से,
नज़र आ गईं ...देखो मिलने नज़र से ।

वतन की महक से ....महकता परिंदा ,
कई बीज लेकर......उड़ा था शज़र से ।

खयालों ने मुझसे...कहा रोककर कल ,
कभी हमको देखो ग़ज़ल की नज़र से॥

कई प्रश्न ढलती .............उमंगों ने पूछे ,
निकालेंगें कैसे अब बिटिया को डर से ।

नहीं रब से कोई .....हमें आज शिकवा ,
बरसना है जैसे वो......जी भर के बरसे ।

चले आए तेरी...........मर्जी से मालिक ,
बता तू ही लौटेंगे कब हम सफ़र से ।

रखो ऐसी तासीर......बातों में , हर शै ,
उठे हो के रौशन.......सदा तेरे दर से ।


.........@@@@@.............

2 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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