चित्र गूगल से साभार
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
अभी हसरतें निकली भी न थीं घर से,
नज़र आ गईं ...देखो मिलने नज़र से ।
वतन की महक से ....महकता परिंदा ,
कई बीज लेकर......उड़ा था शज़र से ।
खयालों ने मुझसे...कहा रोककर कल ,
कभी हमको देखो ग़ज़ल की नज़र से॥
कई प्रश्न ढलती .............उमंगों ने पूछे ,
निकालेंगें कैसे अब बिटिया को डर से ।
नहीं रब से कोई .....हमें आज शिकवा ,
बरसना है जैसे वो......जी भर के बरसे ।
चले आए तेरी...........मर्जी से मालिक ,
बता तू ही लौटेंगे कब हम सफ़र से ।
रखो ऐसी तासीर......बातों में , हर शै ,
उठे हो के रौशन.......सदा तेरे दर से ।
.........@@@@@.............
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
hruday se aabhar aapkaa !
Deletesaadar
jyotsna