चित्र गूगल से साभार
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा
फैली है हरसूँ ........ये कैसी चादर ,
देखें चलो हम.....भी परदा हटाकर |
इतना गणित हमको समझा दो रख दें ,
खुशी जोड़कर और गमों को घटाकर |
ले चल मुझे उसकी जानिब,कि जिस तक ,
झाँका न अब तक....सवेरा भी जाकर |
बरसीं जो बूँदें .......तब दिल ने जाना ,
रोया बहुत........वो भी मुझको रुलाकर |
खुद पर ही....जिनको भरोसा नहीं वो ,
क्यों देखते हैं............मुझे आज़माकर |
इस दिल की बस्ती में रौशन सा कुछ है ,
ज़रा देख लेना.........निगाहें झुकाकर |
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बरसीं जो बूँदें .......तब दिल ने जाना ,
ReplyDeleteरोया बहुत........वो भी मुझको रुलाकर ..
बहुत ही उम्दा शेर ... मन में उतर गया इसका भाव ... लाजवाब रचना है ...
हृदय से धन्यवाद ..Digamber Naswa ji
Deletesaadar !
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद ..सुशील कुमार जोशी जी .
Deleteसादर !
बहुत ही उम्दा शेर
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद आपका |
Deleteसादर !