Tuesday, 28 January 2014

सवेरा !!

                                   चित्र गूगल से साभार 
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 


फैली है हरसूँ ........ये कैसी चादर ,
देखें चलो हम.....भी परदा हटाकर |

इतना गणित हमको समझा दो रख दें ,
खुशी जोड़कर और गमों को घटाकर |

ले चल मुझे उसकी जानिब,कि जिस तक ,
झाँका न अब तक....सवेरा भी जाकर |

बरसीं जो बूँदें .......तब दिल ने जाना ,
रोया बहुत........वो भी मुझको रुलाकर |

खुद पर ही....जिनको भरोसा नहीं वो ,
क्यों देखते हैं............मुझे आज़माकर |

इस दिल की बस्ती में रौशन सा कुछ है ,
ज़रा देख लेना.........निगाहें झुकाकर |

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6 comments:

  1. बरसीं जो बूँदें .......तब दिल ने जाना ,
    रोया बहुत........वो भी मुझको रुलाकर ..

    बहुत ही उम्दा शेर ... मन में उतर गया इसका भाव ... लाजवाब रचना है ...

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    1. हृदय से धन्यवाद ..Digamber Naswa ji
      saadar !

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  2. Replies
    1. हृदय से धन्यवाद ..सुशील कुमार जोशी जी .

      सादर !

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  3. बहुत ही उम्दा शेर

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका |

      सादर !

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