डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
खुद को
खुद समझाया कर ,
केवल
दर्द न गाया कर |१
सच्चाई....औ’....खुद्दारी
,
इन पर
वक्त न जाया कर |२
दुनिया
का दस्तूर यही ,
खाया और
खिलाया कर |३
अपने भी
कुछ फ़र्ज़ यहाँ ,
यह मत
याद दिलाया कर |४
बस आईना
ले दिल का ,
खुद को
रोज़ दिखाया कर |५.
- 'गुलशने-ग़ज़ल' से
डॉ. मिथिलेशकुमारी मिश्र जी के सम्पादन में महिला ग़ज़लकारों की ग़ज़लों का संकलन 'गुलशने-ग़ज़ल' वाणी -वाटिका प्रकाशन ,सैदपुर , पटना ,बिहार से प्रकाशित हुआ है | जिसमें उन्होंने वरिष्ठ महिला रचनाकारों के साथ मेरी भी 27 रचनाओं को स्थान देकर मेरा बहुत उत्साहवर्धन किया है | इस प्रोत्साहन के लिए आदरणीया डॉ. साहिबा की हृदय से आभारी हूँ |
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
नवरात्रों की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (27-03-2015) को "जीवन अगर सवाल है, मिलता यहीं जवाब" {चर्चा - 1930} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteहृदय से आभार आदरणीय !
Deleteलाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ... बहुत बधाई हो आपको गजलों के प्रकाशन की ...
ReplyDeleteहृदय से आभार आदरणीय !
Deleteहृदय से आभार आदरणीय !
Deleteझार्दिक बधाई डॉ ज्योत्स्ना जी ,ग़ज़ल की इस सफल यात्रा के लिए ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आदरणीय !
Deleteहार्दिक बधाई !
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका !
Deleteवाह बहुत बढ़िया .....बधाई आदरणीया
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका !
Deleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब हार्दिक बधाई.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ग़ज़ल, हर शेर लाजवाब हार्दिक बधाई.
ReplyDeletehruday se dhanyawad aapakaa !
Deleteलाजवाब शेर हैं
ReplyDeleteHardik dhanyawad aapaka
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