Wednesday, 23 September 2015

दो कविताएँ !



अनिता मंडा


रूह
१ 
आग इसे जला नहीं सकती
पानी गला नहीं सकता
हवा इसे सुखा नहीं सकती
पर सदा छुअन से परे
कब रह पाती है रूह
दबती तो है यादों के बोझ से
काँपती तो है काली
अँधेरी परछाइयों से
तोड़ते तो हैं दुःख के
पत्थर इसे
बंधती तो है
मोह के धागों से
कहाँ रह पाती है
रूह आज़ाद।

 २ 

सज़दे में है या गुनाह में है
दिल तू ही बता किस राह में है...

फिर एक छनाका होने को है
शीशा पत्थर की पनाह में है...

अब रूह काँपती है इस चमन की
कली इक खिलने की चाह में है...

यूँ खेला न करो टूटे दिल से
कुछ तो असर उसकी आह में है...

हमसे सच कह दिया करो हुजूर
कुछ ना रखा झूठी सी वाह में है...

छुपा ना रहेगा कुछ भी उससे
अब हर कदम उसकी निगाह में है...

~~~~~~~****~~~~~~~

(चित्र गूगल से साभार)

13 comments:

  1. आदरणीया ज्योत्स्ना जी बहुत बहुत आभार मेरी कविताएँ यहां लगाने के लिए।

    ReplyDelete
  2. अनिता मण्डा की कविताएँ मन को मुग्ध करती हैं। विचार और कल्पना का सौन्दर्य पाठक को बाँध लेता है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. उत्साह बढ़ाने हेतु हृदय से बहुत बहुत आभार

      Delete
  3. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-09-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2108 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. दोनों रचनाएँ बहुत ही उत्कृष्ट...

    ReplyDelete
  5. दोनों रचनाएं बहुत प्रभावी ...

    ReplyDelete
  6. भावप्रवण, सहज और सुंदर । बधाई प्रिय अनिता जी !

    ReplyDelete
  7. Start self publishing with leading digital publishing company and start selling more copies
    Publish Online Book and print on Demand| publish your ebook

    ReplyDelete
  8. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

    ReplyDelete