डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
बिटिया
आँगन की कली, उपवन का शृंगार |
महकी
कस्तूरी हुई, महकाए संसार ||
छू लेना आकाश
मन ,रख मिट्टी का मान |
तुम्हें धरा पर स्वर्ग का, करना है संधान ||
कहीं धूप
अंगार सी, कहीं मिलेगी छाँव |
काँटे भी है
राह में , सखी ! सँभल रख पाँव ........
.बहुत शुभ कामनाएँ !!
(चित्र गूगल से साभार )
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-03-2016) को "आठ मार्च-महिला दिवस" (चर्चा अंक-2276) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार आदरणीय !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्माँ
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा