डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
बरस बीतते एक दिवस तो
मेरी सुध आई
मन हिन्दी मुस्काई ।
गिट-पिट बोलें घर बाहर सब
नाती और पोते
नन्ही स्वीटी रटती टेबल
खाते और सोते
खूब पार्टी घर में अम्मा
बैठी सकुचाई
मन हिन्दी मुस्काई !
ओढ़े बैठे अहंकार की
गर्द भरी चादर
मान करें मदिरा का छोड़ी
सुधामयी गागर
पॉप,रैप के संग डोलती
बेबस कविताई
मन हिन्दी मुस्काई !
अपनों में अपनापन लगता
झूठा- सा सपना
कहाँ छोड़ आए हो बोलो
स्वाभिमान अपना
गौरव गाथा दीन-हीन की
जग ने कब गाई
मन हिन्दी मुस्काई !
~~~~****~~~~
(चित्र गूगल से साभार )
बरस बीतते एक दिवस तो
ReplyDeleteमेरी सुध आई
मन हिन्दी मुस्काई ।
गिट-पिट बोलें घर बाहर सब
नाती और पोते
नन्ही स्वीटी रटती टेबल
खाते और सोते
खूब पार्टी घर में अम्मा
बैठी सकुचाई
मन हिन्दी मुस्काई !
"हिंदी दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ !"
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2466 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
हृदय से आभार आपका !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
वाह! सखी ! बहुत ख़ूब !!!
ReplyDelete~सस्नेह
अनिता ललित
bahut -bahut aabhaar sakhi :)
Deletesasneh
jyotsna sharma
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
गौरव गाथा दीन-हीन की
ReplyDeleteजग ने कब गाई
हार्दिक धन्यवाद आपका !
Deleteसादर
ज्योत्स्ना शर्मा
खुबसूरत रचना...
ReplyDeletethanks !
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका !
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteबहुत आभार !
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