चन्दन वन सा मन हुआ ,महके है दिन रैन,
तृष्णा की विष वल्लरी , कब लेने दें चैन |
कब लेने दें चैन , लगे फल आह व्यथा के ,
शेष नहीं हैं बैन ,सुवासित सरस कथा के |
मातु करो उपकार , प्रभासित कर कंचन सा ,
हो अति मधुर उदार ,चारु चित चन्दन वन सा ||1
कलियाँ ख़ुशियों की खिलीं ,ज्यों आए हों कन्त,
धरा मगन,द्वारे खड़े ,हैं ऋतुराज वसन्त |
हैं ऋतुराज वसन्त ,पीत परिधान सुहावन,
सुरभित मंद झकोर ,मधुर गुंजन मनभावन |
बौराई रुत ,आम्र, झूम उठते घर-गलियाँ ,
मिटे सकल संताप, न कैसे खिलतीं कलियाँ ||2
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वसंत पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeletesame to you mam
ReplyDeletewelcome Riya :)
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-01-2018) को "महके है दिन रैन" (चर्चा अंक-2858) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
iss sneh aur sammaan ke liye hruday se aabhaar adaraniiy
Deleteबहुत खूब।
ReplyDeletebahut aabhaar aapaka
Deleteबहुत सुंदर मनभावन सृजन प्रिय सखी ..माँ शारदे की कृपा सदा बनी रहे ।
ReplyDeletehaardik dhanyawaad sunita ji
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