पुस्तक समीक्षा
डॉ.
कुँवर दिनेश सिंह
‘माहिया’ तीन पंक्तियों का छन्द है, जिसमें पहली और तीसरी
पंक्तियों में बारह-बारह मात्राएँ और दूसरी पंक्ति में दस
मात्राएँ होती हैं। प्राय: तीनों ही पंक्तियों में चरण के आदि और अंत में गुरू का
प्रयोग उत्तम माना जाता है । संयोग-वियोग,
दोनों पक्षों से युक्त शृँगार रस व करुण रस से भरे इस छन्द का
उदाहरण पंजाबी लोकगीत की एक लोकप्रिय विधा के रूप में देखा जा सकता है। पंजाबी से
इस छन्द को उर्दू में अपनाया गया है। हिन्दी
के कुछ कवियों ने हाल ही में इस विधा में प्रयोग किए हैं। चूँकि
"माहिया" का सीधा सम्बन्ध गायन/गेयता से है; इसमें
मात्राओं का हेर-फेर रहता है। मुझे साहिर लुधियानवी के लिखे , मुहम्मद रफ़ी द्वारा गाये , एक माहिया की पंक्तियाँ
स्मरण आती हैं: “दिल
लेके दग़ा देंगे / यार
हैं मतलब के / ये देंगे तो क्या देंगे” (फ़िल्म: नया दौर, 1957) इनमें लिखित रूप में
मात्राओं का वाञ्छित क्रम नहीं दीख पड़ता, लेकिन गेयता है।
इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण है ― ग़ुलाम अली द्वारा गाया माहिया: “बाग़ों
में पड़े झूले / तुम भूल गए हम को / हम
तुम को नहीं भूले…” उपरोक्त दोनों उदाहरणों में लिखित रूप
में मात्राओं का संयोजन नहीं मिलता है, लेकिन वाचन/गायन में
उर्दू के अरूज़ के मुताबिक वज़न को बराबर लाने के लिए मात्रा गिरा दी जाती है और
तक़्तीअ और वर्ण-विन्यास करने से माहिया की मात्राओं का क्रम समझा जा सकता है। । हिन्दी
में कवियों ने मात्राओं के 12-10-12 के क्रम में ही माहिया
रचा है ।
डॉ. ज्योत्स्ना
शर्मा के सद्य: प्रकाशित माहिया-संग्रह "तुमसे उजियारा है" में छन्दोबद्ध
माहिया हैं,
जिनमें शृँगार सहित अन्य रस भी उपस्थित हैं; तथा
प्रणय के अतिरिक्त प्रकृति-प्रेम व समाज के कुछ सरोकार भी हैं। कहीं-कहीं
वैचारिकता व दार्शनिक संवेदना भी बलवती हो उठती है। जैसा कि संग्रह का प्रथम
माहिया कहता है: "तुमसे उजियारा है / गीत मधुर होगा / जब मुखड़ा प्यारा है"
(पृष्ठ 15), नि:सन्देह यह मुखड़ा संग्रह
की रचनाओं के सौन्दर्य को अनावृत्त करता है। सभी माहिया सहजत: हृदय में उतर जाते
हैं। छन्द के नियमों की अनुपालना करते हुए, कविताओं में
भाव-प्रवाह सहज रूप से बना हुआ है। बड़े गम्भीर मुद्दे को भी ये माहिया सरलता से
अभिव्यक्त करते हैं।
आज के युग में
व्याप्त वैयक्तिकता व अहंमन्यता के कारण मानवता न केवल बाह्य रूप में अपितु
आन्तरिक स्तर पर भी विभक्त है, जैसा कि इस माहिया में व्यक्त है:
ऊँची
दीवारें हैं / उनसे
भी ऊँची / मन
की मीनारें हैं (पृ. 16)
समाज की
नकारात्मक सोच से आहत प्रेमी-हृदय की वेदना इस माहिया में देखे बनती है: “फूलों
ने यारी की / थी बदनाम हवा
/ झरना लाचारी थी” (पृ. 24) प्रेमी-युगल के परस्पर अविश्वास
अथवा मतभेद से बिखरते सम्बन्ध का खेद इस रचना में देखिए:
गुलज़ार
क़तारें थीं / ख़्वाब
तभी टूटा / जब
पास बहारें थीं (पृ. 52)
सतत बदलते समय
के साथ स्वयं को भी बदल लेना जीवन में प्रसन्नता एवं सफलता का द्योतक है; बीती
बातों को भुलाकर आगे बढ़ते जाने का संदेश इस माहिया में देखा जा सकता है:
रुख़
मोड़ लिया हमने / कल
की बातों को / कल
छोड़ दिया हमने (पृ. 52)
संग्रह के 36
माहिया देश की सुरक्षा में तैनात सैनिक-वीरों को समर्पित हैं: "मन ही मन
मान करे / ये भारत माता / तुझ पर अभिमान करे" (पृ. 57) 26 माहिया "माँ के चरणों में" समर्पित
हैं: "लौटे घर शाम हुए / माँ के चरणों में / फिर चारों धाम हुए"
(पृ. 70) माँ की सहनशक्ति व त्याग-भावना को इन पंक्तियों में
मार्मिक ढंग से कहा गया है:
ख़ुशियों
का नीर बहे / जन्म
दिया जिस पल / माँ
कितनी पीर सहे (पृ. 66)
माँ-बेटी के
सम्बन्ध के साथ-साथ बहन-भाई व पति-पत्नी के सम्बन्ध पर भी कई रचनाएँ हैं। नारीत्व
पर बहुत-सी रचनाएँ हैं। समाज में नित शोषित नारी की दशा पर संसार के रचयिता को एक
उलाहना इन पंक्तियों में देखें: "रचना क्या ख़ूब रची / दुनिया में नारी /
बग़िया में दूब रची" (पृ. 85)
"मौसम
की मर्यादा..." शीर्षक से 27 माहिया प्रकृति के विभिन्न
क्रिया-कलापों को दार्शनिकता के साथ चित्रित करते हैं: "हासिल क्या करना
है / तम का जुर्माना / सूरज को भरना है" (पृ. 97)
जैसा कि इस
संग्रह के आरम्भ में "मुखड़ा प्यारा है", वैसे ही अन्त में भी
मुखड़े की सुषम-छवि मिलती है: "मन तो मतवाला है / गोरे मुखड़े पे /
तिल काला-काला है" (पृ. 117) ― जहाँ काला तिल
सौन्दर्य के वर्धमान अथवा प्रहरी के रूप में कल्पित है।
नि:सन्देह यह
माहिया-संग्रह काव्य-सौन्दर्य से परिपूर्ण है। इसे पढ़ने के बाद, पुस्तक-परिचय
में जाने-माने कवि-साहित्यकार रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की टिप्पणी ― "माहिया की गेयता और छन्द पर आपका (डॉ.
ज्योत्स्ना शर्मा का) पूरा अधिकार है" ― समर्थन के योग्य है। वलसाड, गुजरात से सम्बन्ध रखने वाली
कवयित्री, डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा ― हाइकु,
सेदोका, ताँका, चोका गीत,
नवगीत, दोहा, मुक्तक,
ग़ज़ल इत्यादि काव्य की विभिन्न विधाओं में लिखती हैं, और देश की कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। माहिया छन्द में उनका यह काव्य-संग्रह पाठकों को पसन्द आएगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
तुमसे उजियारा है (माहिया-संग्रह): डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा, हिन्दी साहित्य निकेतन, बिजनौर (उ.प्र.), 2018, पृष्ठ 117, मूल्य 240 रुपए
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डॉ.
कुँवर दिनेश सिंह
सम्पादक: हाइफ़न
# 3, सिसिल
क्वार्टर्ज़, चौड़ा मैदान
शिमला: 171 004 हिमाचल प्रदेश।
ईमेल: kanwardineshsingh@gmail.com
मोबाइल: +91-94186-26090
सुन्दर समीक्षा
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार 🙏
Deleteशानदार
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद 💐🙏
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