Saturday, 12 September 2020

146-बारिशें

 


बेदर्द , बेमुरव्वत होती हैं बारिशें
डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें

तरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
कैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें

दिन भर तपी हैं, धूप में जलती रही हैं जो
उन हसरतों का बोझ भी ढोती हैं बारिशें

रोते हुओं को खूब रुलाने के वास्ते
ये नासमझ सी और क्यों रोती हैं बारिशें

आने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
आँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें

आवाज़ वक्त की सुनी और साथ चल पड़े
झोकों को उन्हीं साथ संजोती हैं बारिशें

नन्ही सी छतरियों के साथ खेल-खेलकर
फिर खूब मस्तियों में भी खोती हैं बारिशें


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा

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23 comments:


  1. बेदर्द , बेमुरव्वत होती हैं बारिशें
    डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें !

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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  4. बहुत सुन्दर।
    हिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय

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  5. बहुत सुंदर रचना

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    1. दिल से शुक्रिया आपका 🌻🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  7. बहुत खूब
    हिंदी दिवस की हार्दिक बधाई

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  8. तरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
    कैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें... सच में क्या खूब ल‍िखा है... पूरी की पूरी रचना गजब ल‍िखी है आपने ज्योत्सना जी

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    1. हार्दिक धन्यवाद आपका

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  9. कितने आयाम खड़े कर दिए ... अलग अलग अंदाज़ में रखा है बारिशों को ...
    बहुत लाजवाब ...

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  10. आने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
    आँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें
    भावपूर्ण सृजन ।

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  11. वाह
    बहुत सुंदर सृजन

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  12. आने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
    आँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें ,,,,।।बहुत सुंदर दिल को स्पर्श करती हुई ।

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  13. हार्दिक धन्यवाद आपका

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