बेदर्द , बेमुरव्वत होती हैं बारिशें
डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें
तरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
कैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें
दिन भर तपी हैं, धूप में जलती रही हैं जो
उन हसरतों का बोझ भी ढोती हैं बारिशें
रोते हुओं को खूब रुलाने के वास्ते
ये नासमझ सी और क्यों रोती हैं बारिशें
आने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
आँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें
आवाज़ वक्त की सुनी और साथ चल पड़े
झोकों को उन्हीं साथ संजोती हैं बारिशें
नन्ही सी छतरियों के साथ खेल-खेलकर
फिर खूब मस्तियों में भी खोती हैं बारिशें
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
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ReplyDeleteबेदर्द , बेमुरव्वत होती हैं बारिशें
डूबे हुओं को और डुबोती हैं बारिशें !
सुन्दर।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (14 सितंबर 2020) को '14 सितंबर यानी हिंदी-दिवस' (चर्चा अंक 3824) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
हृदय से आभार आपका!
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया आपका 🌻🙏
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब।
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteहिंदी दिवस की हार्दिक बधाई
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteतरसे हुए दिलों को कभी यूँ ही छोड़कर
ReplyDeleteकैसे बड़े सुकून से सोती हैं बारिशें... सच में क्या खूब लिखा है... पूरी की पूरी रचना गजब लिखी है आपने ज्योत्सना जी
हार्दिक धन्यवाद आपका
Deleteकितने आयाम खड़े कर दिए ... अलग अलग अंदाज़ में रखा है बारिशों को ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
बहुत बहुत आभार
Deleteआने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
ReplyDeleteआँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें
भावपूर्ण सृजन ।
हृदय से धन्यवाद
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
बहुत बहुत आभार आपका !
Deleteआने की हो खुशी कि जाने का गम यहाँ
ReplyDeleteआँखों को मेरी रोज़ भिगोती हैं बारिशें ,,,,।।बहुत सुंदर दिल को स्पर्श करती हुई ।
हार्दिक धन्यवाद आपका
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