Sunday, 7 March 2021

155- कभी चाँदनी ....


 (चित्र गूगल से साभार)

भला क्या बताऊँ ,कि, 'आखिर मैं क्या हूँ' ?

नदी हूँ , हवा हूँ , हया हूँ , अदा हूँ ।


कभी चाँदनी तो कभी अग्निधर्मा-
किरण हूँ, अँधेरे में जलता दिया हूँ ।

सुमन हूँ , सुधा हूँ , सृजन-साधना मैं ,
गरल हूँ मैं ,कंटक ,कहीं सर्वदा हूँ ।

कदम दर कदम मैं चली थी सँभलकर ,
मगर मुश्किलों का मुकम्मल पता हूँ ।

ज़रा ध्यान से जो सुनोगे मुझे तुम ,
तुम्हारे ही दिल की तुम्हारी सदा हूँ ।

भला अपनी पहचान मैं क्या बताऊँ ,
मरज हूँ , मरीजा हूँ , खुद ही दवा हूँ  ।

समझ है तुम्हारी कहे 'ज्योति' क्या अब ,
बहन-बेटी हूँ , संगिनी , माँ , प्रिया हूँ ।

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 

15 comments:

  1. शुभ महिला दिवस 🌷🌷

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  2. सुंदर रचना।
    स्त्री सब कुछ

    नई रचना गुजरे वक़्त में से...

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    1. हृदय से धन्यवाद आपका 🙏

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज मंगलवार 9 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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    1. हृदय से आभार आपका 💐🙏

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद 💐🙏

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  5. वाह ! वाह ! वाह ! यह ग़ज़ल केवल किसी ख़ास दिन के लिए नहीं, हमेशा के लिए है । लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ दिल जीत लेने वाले अशआर हैं ये तो ।

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    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभारी हूँ आपकी !

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    1. हार्दिक धन्यवाद उषा किरण जी 🙏💐

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  7. बहुत बहुत सराहनीय सुन्दर रचना | शुभ कामनाएं |

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  8. बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏

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  9. उम्दा गज़ल के लिए आत्मिक बधाई प्रिय सखी, सभी शेयर उम्दा

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  10. आत्मिक आभार सुनीता जी 💐🙏

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