चित्र :गूगल से साभार |
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
मन का तार सितार हुआ है
,
गीतों से....गुलज़ार हुआ है ।
ग़म अपनाए खुशियाँ बाँटीं ,
मत कहिये
व्यापार हुआ है ।
माना राहें....बहुत कठिन हैं ,
अब
चलना...दुश्वार हुआ है ।
बहुत अँधेरा...दीप जला लें ,
देखें...अब
उजियार हुआ है ।
सतत दया हो जो प्रभु तेरी ,
बन्दा भव
से....पार हुआ है ।
बोलें तो.........ऐसा वो बोलें ,
वाणी
का......शृंगार हुआ है ।
हम हिंदी हैं ...एक लगन है ,
हमें वतन
से...प्यार हुआ है ।
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नमस्कार आपकी यह रचना आज शुक्रवार (06-09-2013) को निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद ..अरुन जी आपकी स्नेहमयी प्रेरणा हेतु आभार !
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeletelatest post: सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !
प्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका |
Deleteसादर !!
सुन्दर गीत
ReplyDeleteप्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका |
Deleteसादर !!
बहुत खुबसूरत रचना... सितार सा ठंडक देता हुआ ..
ReplyDeleteप्रोत्साहन भरी उपस्थिति के लिए बहुत आभार आपका |
Deleteसादर !!
बहुत प्रभावशाली प्रस्तुति । भावों के साथ चित्र -संयोजन भी अर्थपूर्ण है।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका प्रेरक उपस्थिति के लिए |
Deleteसादर !
अरे वाह ..
ReplyDeleteआप तो बहुत अच्चा और मधुर लिखतीं हैं !!
बधाई !
बहुत बहुत धन्यवाद सतीश सक्सेना जी |
Deleteसादर !
आप बहुत अच्छा लिखती हैं और गहरा भी बधाई....!!!
ReplyDeleteहृदय से धन्यवाद संजय भास्कर जी |
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