चित्र गूगल से साभार
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डॉ.ज्योत्स्ना
शर्मा
मधुर-मधुर ये गाया करती ,
सुन्दर छंद सुनाया करती ।
तुम कान्हा हो तो मधुबन में ,
रसमय रास रचाया करती ।
शिवमय होकर पतित-पावनी ,
गंगा -सी बह जाया करती ।
राम ,रमा-पति कण्ठ लगाते ,
मुग्धा बहुत लजाया करती ।
चाहत थी जो तुम छू लेते ,
कलियों- सी महकाया करती ।
तुम बिन गीत-ग़ज़ल में कैसे ,
इतना रस बरसाया करती ।
अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
वरना कलम रुलाया करती ।~~~~~******~~~~~
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (17.01.2014) को "सपनों को मत रोको" (चर्चा मंच-1495) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
ReplyDeleteइस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आपका |
Deleteसादर !
सुंदर !
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका |
Deleteसादर !
आपकी कविता का एक-एक शब्द दिल को छू गया ।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका भाई जी |
Deleteसादर !
बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें आदरणीया-
हृदय से आभार आपका |
Deleteसादर !
चाहत थी जो तुम छू लेते ,
ReplyDeleteकलियों- सी महकाया करती ।
............वाह बहुत सुन्दर
हृदय से आभार आपका |
Deleteसादर !
भावमय ... भक्ति और प्रेम का भाव स्वत ही उमड़ आता है ...
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका |
Deleteसादर !