Wednesday, 15 January 2014

तुम दर्द नहीं हो ...

                                 चित्र गूगल से साभार 

डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 


मधुर-मधुर ये गाया करती ,
सुन्दर छंद सुनाया करती ।

तुम कान्हा हो तो मधुबन में ,
रसमय रास रचाया करती ।

शिवमय होकर पतित-पावनी ,
गंगा -सी बह जाया करती ।

राम ,रमा-पति कण्ठ लगाते ,
मुग्धा बहुत लजाया करती ।

चाहत थी जो तुम छू लेते ,
कलियों- सी महकाया करती ।

तुम बिन गीत-ग़ज़ल में कैसे ,
इतना रस बरसाया करती ।

अच्छा है ! तुम दर्द नहीं हो ,
वरना कलम रुलाया करती ।

~~~~~******~~~~~

12 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (17.01.2014) को "सपनों को मत रोको" (चर्चा मंच-1495) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।

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    1. इस स्नेह और सम्मान के लिए हृदय से आभार आपका |
      सादर !

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    1. हृदय से आभार आपका |
      सादर !

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  3. आपकी कविता का एक-एक शब्द दिल को छू गया ।

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    1. हृदय से आभार आपका भाई जी |
      सादर !

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  4. बढ़िया प्रस्तुति-
    बधाई स्वीकारें आदरणीया-

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    1. हृदय से आभार आपका |
      सादर !

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  5. चाहत थी जो तुम छू लेते ,
    कलियों- सी महकाया करती ।

    ............वाह बहुत सुन्दर

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    1. हृदय से आभार आपका |
      सादर !

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  6. भावमय ... भक्ति और प्रेम का भाव स्वत ही उमड़ आता है ...

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    1. हृदय से आभार आपका |
      सादर !

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