एक
आवाजाही जारी है ,
फिर हंगामा तारी
है ।
जाने कैसा रोग
लगा ,
जाने क्या बीमारी है ।
नस -नस में घोटाला है ,
रग-रग में मक्कारी है ।
क्या जाना क्या अनजाना ,
पंजे में ऐयारी है ।
अंधे को अंधा कहते ,
अब तो विपदा भारी है ।
बुझे दिए में तेल भरो ,
जाने क्या बीमारी है ।
नस -नस में घोटाला है ,
रग-रग में मक्कारी है ।
क्या जाना क्या अनजाना ,
पंजे में ऐयारी है ।
अंधे को अंधा कहते ,
अब तो विपदा भारी है ।
बुझे दिए में तेल भरो ,
इसमें क्या हुशियारी है ।
काल कलम से पूछ रहा ,
काल कलम से पूछ रहा ,
तेरी किससे यारी
है ।
दो
जब से वो मशहूर हुए ,
थोड़ा -सा मग़रूर हुए ।
आसमान से की बातें ,
औ’
धरती से दूर हुए ।
जाम मिला जब सत्ता का ,
खूब नशे में चूर हुए ।
गैरों को अपनाते क्या ,
अपनों से भी दूर हुए ।
चुप रहना था,
बोल उठे ,
आदत से मजबूर हुए ।
नूरे इलाही छोड़ गया ,
यूँ आखिर बेनूर हुए ।
-0-
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 01/03/2014 को "सवालों से गुजरना जानते हैं" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1538 पर.
बहुत आभार आपका |
Deleteसादर !
बहुत खूब :)
ReplyDeleteबहुत आभार आपका |
Deleteसादर !
सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था पर चोट करती पंक्तियाँ... दोनों कविता के भाव बेहद उम्दा हैं...
ReplyDeleteबहुत आभार आपका |
Deleteसादर !
राजनीतिक व्यवस्था पर चोट.........बेहद उम्दा
ReplyDeleteबहुत आभार आपका |
Deleteसादर !
सामाजिक बातों का सुन्दर सरोकार है इन गज़लों में ... बहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत आभार आपका |
Deleteसादर !